Thursday, 8 September 2016

संक्रान्ति व्रत --- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

         सूर्यदेव जब एक राशि को छोड़कर दूसरी राशि मे संक्रमण या प्रवेश करते हैं ; उसे संक्रान्ति कहा जाता है।राशियाँ कुल बारह हैं ; जो मेष ; वृष ; मिथुन ; कर्क ; सिंह ; कन्या ; तुला ; वृश्चिक ; धनु ; मकर ; कुम्भ और मीन के नामों से प्रसिद्ध हैं।सूर्यदेव इन्हीं बारह राशियों मे भ्रमण करते हैं।इसलिए वर्ष मे कुल बारह संक्रान्तियाँ होती हैं।ये संक्रान्तियाँ अंग्रेजी महीने की 14 से 17 तारीख के मध्य होती हैं।सूर्यदेव जिस राशि मे प्रवेश करते हैं ; उसी राशि की संक्रान्ति कही जाती है।जैसे 14 अप्रैल को जब मेष मे प्रवेश करते हैं ; तब उसे मेष की संक्रान्ति कहा जाता है।इसी प्रकार वृष ; मिथुन आदि की संक्रान्तियाँ कहलाती हैं।
विधि -----
1--  व्रती प्रातः स्नानादि करके एक वेदी या चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर अक्षतों से अष्टदल कमल बनाये।फिर उस पर सूर्य की स्वर्ण प्रतिमा स्थापित कर षोडशोपचार पूजन करे।उसके बाद अपनी सामर्थ्य के अनुसार उपवास ; फलाहार ; नक्त ; एकभुक्त या अयाचित व्रत करे।
2-- भविष्यपुराण मे भगवान श्री कृष्ण ने साम्ब से इसका वर्णन किया है।व्रती संक्रान्ति के एक दिन पूर्व एक बार हविष्यान्न का आहार ग्रहण करे।सायंकाल अरुण देव को प्रणाम कर सूर्यदेव का ध्यान करके भूमि पर कुश-शय्या पर शयन करे।दूसरे दिन प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर  " ऊँ खखोलकाय स्वाहा " का जप करे।फिर सूर्य-पूजन ; हवन ; तर्पण आदि करे।अग्नि को सूर्य का ताप मानकर उसी मे हवन एवं सूर्य पूजन करे।पूर्णाहुति के बाद भोजन एवं दक्षिणा देकर ब्राह्मणों को सन्तुष्ट करे।
3--- भविष्य पुराण मे ही एक अन्य स्थल पर भगवान श्री कृष्ण ने महाराज युधिष्ठिर से एक अन्य विधि का भी वर्णन किया है।इसके अनुसार संक्रान्ति व्रत का आरम्भ सूर्य के उत्तरायण या दक्षिणायन के दिन अथवा विषुव योग ( मेष ; तुला की संक्रान्ति ) मे करना चाहिए।इसमे भी संक्रान्ति के एक दिन पूर्व एक बार शुद्ध सात्विक आहार लेकर रात्रि शयन करे।संक्रान्ति के दिन तिल-मिश्रित जल से स्नान करके भूमि पर चन्दन से कर्णिका सहित अष्टदल कमल बनाये।उसी पर सूर्यदेव का आवाहन करे।
          कर्णिका मे " सूर्याय नमः " ; पूर्व दल मे " आदित्याय नमः " ; अग्निकोण के दल पर " सप्तार्चिषे नमः " ; दक्षिणी दल पर  " ऋङ्मण्डलाय नमः " ; नैऋर्त्यकोण वाले दल पर  " सवित्रे नमः " ; पश्चिमी दल पर  " वरुणाय नमः " ; वायव्यकोण के दल पर " सप्तसप्तये नमः " ; उत्तरी दल पर " मार्तण्डाय नमः " और ईशानकोण वाले दल पर " विष्णवे नमः " से सूर्यदेव की स्थापना करे।फिर स्नान ; चन्दन ; पुष्प आदि से पूजन कर अर्घ्य प्रदान करे।उसके बाद अपनी सामर्थ्य के अनुसार सुवर्ण का कमल बनवा कर उसे घृतपात्र और कलश के साथ ब्राह्मण को दान कर दे।तत्पश्चात् चन्दन-पुष्प युक्त जल से भूमि पर सूर्य को अर्घ्य प्रदान करे।
         इसी विधि से प्रत्येक मास मे सूर्य पूजन करे।यदि प्रति मास करना संभव न हो तो वर्ष की समाप्ति पर ये सभी क्रियायें बारह बार करे।वर्षान्त मे घृत-मिश्रित खीर का हवन करे और ब्राह्मणों को भी घृत मिश्रित खीर का भोजन कराये।साथ ही बारह गाय ; रत्न सहित स्वर्णमय कमल और कलशों का दान करे।इसी प्रकार सोने ; चाँदी या ताम्र की शेषनाग सहित पृथ्वी की प्रतिमा बनवा कर उसे भी दान करे।ऐसा करने मे असमर्थ हो तो आटा की शेष सहित पृथ्वी की प्रतिमा बनाकर स्वर्ण निर्मित सूर्य सहित दान करे।
स्नान ---- संक्रान्ति के दिन गंगा आदि पवित्र नदियों मे स्नान करने का बहुत महत्त्व है।इससे असीम पुण्यफल की प्राप्ति होती है।विशेषकर मकर संक्रान्ति के दिन तीर्थराज प्रयाग मे स्नान करने का असीम महत्त्व है।
दान ---- संक्रान्ति के दिन दान का भी बहुत महत्त्व है।मेष की संक्रान्ति मे मेष का ; वृष की संक्रान्ति मे गौ का ; मिथुन की संक्रान्ति मे वस्त्र ; अन्न ; सवारी का ; कर्क मे घृतधेनु का ; सिंह मे सुवर्ण सहित छत्र का ; कन्या मे वस्त्र एवं गृह का ; तुला मे अन्न और गोरस का ; वृश्चिक मे दीपदान ; धनु मे वस्त्र और सवारी का ; मकर मे काष्ठ और अग्नि का ; कुम्भ मे गौ ; जल एवं तृण का तथा मीन की संक्रान्ति मे खट्टा अन्न का दान करना चाहिए।
माहात्म्य ---- प्रथम और द्वितीय विधि से व्रत एवं पूजन करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है।वह जीवन भर पुत्र-पौत्र ; धन-धान्य से परिपूर्ण रहता है।तृतीय विधि से पूजन करने पर व्रती अनन्त काल तक स्वर्ग मे निवास करता है।वहाँ गन्धर्व समूह उसकी पूजा करते हैं।पुण्य क्षीण होने पर वह सृष्टि के आदि मे उत्तम कुल और शील से सम्पन्न होकर सातों द्वीपों का अधीश्वर बनता है।वह अनेक पुत्र ; पौत्र ; बन्धु ; बान्धवों से युक्त एवं पूजित होता है।
         अग्नि पुराण के अनुसार जो मनुष्य संक्रान्ति की रात्रि को जागरण करता है ; उसे स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है।इसी प्रकार संक्रान्ति जब अमावस्या को पड़े तब शिव और सूर्य का पूजन करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है।उत्तरायण सम्बन्धी मकर संक्रान्ति मे प्रातःकाल स्नान करके भगवान श्री केशव का पूजन करना चाहिए।

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