Sunday, 4 September 2016

प्रदोषस्तोत्राष्टकम्

           देवाधिदेव महादेव भगवान शिव जी से सम्बन्धित व्रतों मे प्रदोष व्रत का स्थान सर्वोपरि है।उस दिन उपवास पूर्वक प्रदोष काल मे भगवान शिव जी की विधिवत् पूजा करने के बाद निम्नलिखित स्तोत्र का पाठ किया जाय तो अनन्त पुण्यफल की प्राप्ति होती है ----
   सत्यं ब्रवीमि परलोकहितं ब्रवीमि
         सारं ब्रवीम्युपनिषद् हृदयं ब्रवीमि।
   संसारमुल्बणसारमवाप्य जन्तोः
         सारोऽयमीश्वरपदाम्बुरुहस्य सेवा।।
   ये नार्चयन्ति गिरिशं समये प्रदोषे
         ये नाऽर्चितं शिवमपि प्रणमन्ति चाऽन्ये।
   एतत् कथां श्रुतिपुटैर्न पिबन्ति मूढास्
         ते जन्म-जन्मसु भवन्ति नरा दरिद्राः।।
   ये वै प्रदोषसमये परमेश्वरस्य
        कुर्वन्त्यनन्य-मनसोऽङ्घ्रि-सरोजपूजनम्।
   नित्यं प्रवृद्ध-धनधान्य-कलत्र-पुत्र-
         सौभाग्य-सम्पदधिकास्त इहैव लोके।।
   कैलासशैल भुवने त्रिजगज्जनित्री
         गौरीं निवेश्य कनकार्चितरत्नपीठे।
   नृत्यं विधातुमभिवाञ्छति शूलपाणौ
       देवाः प्रदोषसमये नु भजन्ति सर्वे।।
   वाग्देवी धृतवल्लकी शतमुखो वेणुं दधत् पद्मज-
   स्तालोन्निद्रकरो रमा भगवती गेयप्रयोगान्विता।
   विष्णुः सान्द्रमृदंगवादनपटुर्देवाः समन्तात् स्थिताः
   सेवन्ते तमनु प्रदोषसमये देवं मृडानीपतिम्।।
   गन्धर्वयक्ष-पतयोरग-सिद्ध-साध्य-
          विद्याधरा-ऽमरवराप्सरसां गणांश्च।
   येऽन्ये त्रिलोकनिलयाः सहभूतवर्गाः
         प्राप्ये प्रदोषसमये हरपार्श्वसंस्थाः।।
   अतः प्रदोषे शिव एक एव
          पूज्योऽथ नाऽन्ये हरिपद्मजाद्याः।
   तस्मिन् महेशे विधिनेज्यमाने
        सर्वे प्रसीदन्ति सुराधिनाथाः।।
   एष ते तनयः पूर्वजन्मनि ब्राह्मणोत्तमः।
   प्रतिग्रहैर्वयो निन्ये न दानाद्यैः सुकर्मभिः।।
   अतो दारिद्र्यमापन्नः पुत्रस्ते द्विजभामिनि।
   तद्दोषपरिहारार्थं शरणं यातु शंकरम्।।
   इति स्कन्दपुराणोक्तं प्रदोषस्तोत्राष्टकं सम्पूर्णम्।

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