प्रत्येक महीने मे दो पक्ष होते हैं -- शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।इनमे से शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से आरम्भ होकर पूर्णिमा तक होता है।इस पक्ष मे चन्द्रमा की कलायें क्रमशः बढ़ती जाती हैं और पूर्णिमा को पूर्ण चन्द्र का दर्शन होता है।इसलिए इसे उजाला पक्ष भी कहा जाता है।कृष्ण पक्ष का आरम्भ पूर्णिमा के दूसरे दिन की प्रतिपदा से होता है और यह अमावस्या तक रहता है।इस पक्ष मे चन्द्रमा की किरणें क्रमशः क्षीण होती जाती हैं।अमावस्या को चन्द्र दर्शन बिल्कुल नहीं होता।इस पक्ष मे चन्द्रमा का प्रकाश क्रमशः कम होता जाता है और अँधेरा बढ़ता जाता है।इसलिए इस पक्ष को अँधेरा पक्ष भी कहा जाता है।
विधि ---- यदि शुक्ल पक्ष का व्रत करना हो तो उसे प्रतिपदा से आरम्भ करके पूर्णिमा तक प्रतिदिन किया जाता है।इसमे सूर्यपूजन का विधान है।अतः व्रती स्नानादि करके प्रातःकाल किसी चौकी पर सूर्यदेव की स्वर्ण-प्रतिमा स्थापित कर उसका विधिवत् पूजन करे और निम्नलिखित मन्त्र से तीन बार अर्घ्य प्रदान करे -----
एहि सूर्य सहस्रांशो तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणार्घ्यं दिवाकर।।
इस व्रत मे मध्याह्न काल मे एक बार हविष्यान्न का भोजन करने का विधान है।
कृष्ण पक्ष का व्रत प्रतिपदा से अमावस्या तक किया जाता है।इसमे चन्द्र-पूजन की प्रधानता है।अतः व्रती प्रतिदिन प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर चन्द्रमा की रजत प्रतिमा स्थापित कर उसका विधिवत् पूजन करे।फिर चन्द्रमा के उद्देश्य से सूर्य को अर्घ्य प्रदान करे।तत्पश्चात् विधिवत् प्रार्थना करे।फिर मध्याह्न काल मे हविष्यान्न का आहार ले।
माहात्म्य ---- इस व्रत का पर्याप्त महत्त्व है। इसे करने से मनुष्य को दीर्घायु ; आरोग्य एवं सौभाग्य की प्राप्ति होती है।वह हर प्रकार के दुःखों से मुक्त होकर सुखपूर्वक जीवन यापन करता है।
Wednesday, 7 September 2016
पक्ष व्रत -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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