Thursday, 22 September 2016

अनुपम देवर लक्ष्मण जी --- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

         पारिवारिक सम्बन्धों मे भाभी और देवर का सम्बन्ध अत्यन्त पवित्र होता है।हमारे सद्ग्रन्थों मे अनेक देवरों का वर्णन हुआ है ; किन्तु लक्ष्मण जैसा देवर कहीं नहीं मिलता है।वाल्मीकीय रामायण के अनुसार सीता जी का अन्वेषण करते हुए श्री राम और लक्ष्मण ऋष्यमूक पर्वत पर पहुँचे।वहाँ सुग्रीव ने बताया कि एक दिन कोई राक्षस विमान द्वारा किसी स्त्री को बलात् लिये जा रहा था।वह स्त्री हा राम ! हा लक्ष्मण ! पुकारती हुई रो रही थी।उसने अपनी चादर और कई आभूषण नीचे गिरा दिया था।हम लोगों ने उन वस्तुओं को अपने पास रख लिया है।अब आप स्वयं देख लें कि वे सीता जी के ही हैं अथवा किसी दूसरे के हैं।
         श्री राम ने उन आभूषणों को पहले तो गले लगाया फिर लक्ष्मण से कहा -- देखो लक्ष्मण ; ये आभूषण सीता के ही हैं।उस समय लक्ष्मण ने कहा -- भैया ! मै इन बाजूबन्दों और कुण्डलों को तो नहीं पहचानता हूँ किन्तु प्रतिदिन भाभी के चरणों मे जब प्रणाम करता था ; तब इन नूपुरों पर दृष्टि पड़ जाती थी।इसलिए इन नूपुरों को अवश्य पहचानता हूँ ---
   नाहं जानामि केयूरे नाहं जानामि कुण्डले।।
   नूपुरे त्वभिजानामि नित्यं पादाभिवन्दनात्।
         यहाँ ध्यान देने योग्य है कि लक्ष्मण जी अयोध्या मे प्रतिदिन सीता जी का चरण-वन्दन करते थे।वनवास काल मे भी दीर्घकाल तक साथ रहे और नित्य दर्शन-चरण-वन्दन आदि करते थे।परन्तु कभी भी चरणों के अतिरिक्त ऊपरी अंगों पर दृष्टि ही  नहीं डाली।इसलिए वे सीता जी के बाजूबन्द और कुण्डल को नहीं पहचान पाये।यह है एक आदर्श देवर की मर्यादा और भारतीय संस्कृति की अमूल्य विशेषता।ऐसा आदर्श और ऐसी मर्यादा अन्यत्र दुर्लभ है।अतः बड़े गर्व के साथ कहा जा सकता है कि लक्ष्मण जी अनुपम देवर थे।

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