पुराणों अनेक छोटे-छोटे प्रकीर्ण व्रतों का वर्णन किया गया है।ये व्रत अधिकाँशतः प्रत्येक महीने की विभिन्न तिथियों मे किये जाते हैं।यहाँ पर कुछ प्रमुख प्रकीर्ण व्रतों का उल्लेख किया जा रहा है ----
पात्र व्रत ---
यह व्रत किसी भी महीने के किसी भी दिन मे किया जा सकता है।इसमे व्रती प्रातः स्नानादि करके पीपल के वृक्ष की पूजा करे।फिर तिल-पूरित पात्र किसी सुपात्र ब्राह्मण को दान करे।इससे मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है।साथ ही उसे कृत अथवा अकृत किसी भी कार्य के लिए शोक नहीं करना पड़ता है।वह पूर्णतः शोक मुक्त होकर सुखमय जीवन व्यतीत करता है।
वाचस्पति व्रत ----
व्रती किसी शुभ दिन मे प्रातः स्नानादि करके देवगुरु वृहस्पति की सुवर्ण प्रतिमा को पीत वर्णीय वस्त्रादि से अलंकृत कर पूजन करे।फिर उसे ब्राह्मण को दान कर दे।यह कार्य वृहस्पति वार को विशेष शुभ होता है।इस कार्य से मनुष्य के बल की वृद्धि एवं बुद्धि का उत्तम विकास होता है।
शिला व्रत ----
व्रती किसी शुभ दिन मे प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर एकभुक्त व्रत का संकल्प ले।इसके बाद नमक ; कटु ; तिक्त ; जीरक ; मरिच ; हींग तथा सोंठ मिश्रित कोई भोज्य पदार्थ तैयार करे।फिर उस भोज्य पदार्थ एवं शिलाजीत को किन्हीं सात ब्राह्मणों को दान करे।इसके प्रभाव से मनुष्य बहुत वाक्पटु हो जाता है।वह समयोचित एवं तर्कसंगत वार्ता करने मे सक्षम हो जाता है।अन्त मे उसे लक्ष्मीलोक की प्राप्ति होती है।
रुद्रव्रत -----
भगवान शिव जी का अनुग्रह प्राप्त करने के लिए रुद्रव्रत बहुत उत्तम एवं उपयुक्त है।इसमे एक वर्ष तक एकभुक्त व्रत का विधान है।अतः व्रती किसी शुभ दिन मे प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान शिव का पूजन करके एकभुक्त व्रत करे।वर्ष के अन्त मे सुवर्ण-निर्मित एक बैल तथा उपस्करों सहित तिलधेनु किसी ब्राह्मण को दान करे।यद्यपि यह व्रत एक वर्ष मे पूर्ण होता है।परन्तु लाभ की दृष्टि से यह बहुत उत्तम है।इसके प्रभाव से मनुष्य के सभी पाप एवं शोक दूर हो जाते हैं।वह सुखमय जीवन व्यतीत करते हुए अन्त मे शिवलोक को प्राप्त करता है।
नीलव्रत ----
व्रती किसी शुभ दिन मे प्रातः स्नानादि करके भगवान विष्णु का ध्यान करे।फिर सुवर्ण का कमल तथा एक नील कमल एवं शर्करा-पूरित पात्र श्रद्धा-भक्ति के साथ किसी ब्राह्मण को दान करे।यह व्रत बहुत पुण्यदायक है।इसके प्रभाव से मनुष्य विष्णुलोक को प्राप्त होता है।
प्रीति व्रत ----
यह भी भगवान विष्णु का अनुग्रह प्राप्त कराने वाला उत्तम व्रत है।इसे आषाढ़ महीने से आरम्भ कर चार महीने तक किया जाता है।व्रती प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान विष्णु का ध्यान करे।उसके बाद चार मास तक तैलाभ्यङ्ग न करने का संकल्प ले।व्रत के अन्त मे तिल के तेल से भरा हुआ एक घड़ा ब्राह्मण को दान करे।उसके बाद घृत-मिश्रित पायस का भोजन कराये।इससे भगवान विष्णु जी सन्तुष्ट हो जाते हैं और अपने भक्त को विष्णुलोक की प्राप्ति कराते हैं।
गौरी व्रत ----
मातेश्वरी गौरी जी की कृपा प्राप्त करने के लिए यह व्रत बहुत उत्तम है।इसे चैत्र मास मे किया जाता है।व्रती प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर गौरी जी की पूजा करे।उसके बाद व्रत का संकल्प ले।इसमे पूरे चैत्र मास भर दूध ; दही ; घृत ; गुड़ ; ईख और ईख के रस से बने हुए सभी पदार्थों का त्याग किया जाता है।महीने भर के व्रत के अन्त मे दो ब्राह्मणों की पूजा करे।फिर दो वस्त्र ; रस से भरे हुए पात्र आदि ब्राह्मण को दान करे।दान करते समय " गौरी मे प्रीयताम् " कहे।इस उत्तम व्रत के प्रभाव से मनुष्य को गौरीलोक की प्राप्ति होती है।
Friday, 9 September 2016
प्रकीर्ण व्रत --- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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