Friday, 9 September 2016

प्रकीर्ण व्रत -- 3

लक्ष्मी व्रत ----
        यह व्रत किसी मास की पञ्चमी तिथि से आरम्भ किया जाता है।व्रती पञ्चमी को प्रातः स्नानादि नित्यकर्म से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प ले।दिन भर उपवास करे।फिर किसी ब्राह्मण को स्वर्ण कमल और गौ का दान करे।इस व्रत को करने से व्रती को सुन्दर कान्ति एवं सौभाग्य की प्राप्ति होती है।वह प्रत्येक जन्म मे लक्ष्मीवान बना रहता है।इस प्रकार सुख-समृद्धि पूर्ण जीवन व्यतीत करने के बाद अन्त मे विष्णुलोक को प्राप्त होता है।
धारा व्रत -----
        यह व्रत महिलाओं द्वारा किया जाता है।इसका आरम्भ चैत्र मास से करना चाहिए।अतः जो स्त्री व्रत करने की इच्छुक हो ; वह चैत्र मास से आरम्भ करके नियम पूर्वक प्रातःकाल एक वर्ष तक जल का पान करे।उसके बाद भगवान सूर्य नारायण को जलधारा प्रदान करे।वर्ष के अन्त मे पारणा करे।उस दिन किसी ब्राह्मण को घृतपूर्ण नवीन घड़ा दान करे।इस व्रत के प्रभाव से व्रती के सभी रोग नष्ट हो जाते हैं।उसे कान्ति एवं सौभाग्य की प्राप्ति होती है।साथ ही यह व्रत सपत्नी के दर्प का विनाश कर देता है।
देव व्रत -----
      किसी शुभ दिन मे व्रती प्रातःकाल स्नानादि दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प ले।फिर गौरी सहित रुद्र ; लक्ष्मी सहित विष्णु तथा राज्ञी सहित सूर्यदेव की मूर्ति को विधिवत् स्थापित करे।उसके बाद उनका पूजन करे।तत्पश्चात् घण्टा युक्त गौ ; दोहनी और दक्षिणा सहित उस मूर्ति को किसी सुपात्र ब्राह्मण को दान कर दे।इस व्रत को करने से व्रती का शरीर सुन्दर एवं दिव्य हो जाता है।
शुक्ल व्रत -----
         भगवान शिव एवं भगवान विष्णु को प्रसन्न कर उनकी अनुकम्पा प्राप्त करने के उपायों मे शुक्ल व्रत का महत्त्व सर्वथा उल्लेखनीय है।इस व्रत को किसी शुभ मुहूर्त मे करना चाहिए।व्रती प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प ले।फिर श्वेत पुष्प ; श्वेत चन्दन आदि से शिवलिंग एवं विष्णु जी की प्रतिमा का पूजन करे।यह पूजन एक वर्ष तक प्रतिदिन करना चाहिए।वर्षान्त मे ब्राह्मण को एक घट एवं एक गाय का दान करे।यह व्रत बहुत कल्याणकारी है।इसे करने वाला व्यक्ति जीवन भर सुखी रहता है और अन्त मे शिवलोक को प्राप्त करता है।
वीर व्रत -----
       यह व्रत नवमी तिथि को किया जाता है।अतः व्रती को चाहिए कि वह प्रातः स्नानादि से शुद्ध होकर एकभुक्त व्रत का संकल्प ले।व्रतान्त मे कन्याओं को भोजन कराये।भोजनोपरान्त उन्हें कञ्चुकी और दो वस्त्र प्रदान करे।तत्पश्चात् ब्राह्मण को स्वर्ण सिंहासन प्रदान करे।जो स्त्री श्रद्धा-भक्ति के साथ इस व्रत को करती है ; उसे जन्म-जन्मान्तर तक सुन्दर स्वरूप एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।व्रती जीवन भर सुखमय रहते हुए अन्त मे शिवलोक को प्राप्त करता है।
वारि व्रत ------
        यह व्रत चैत्र से आरम्भ करके आषाढ़ मास तक किया जाता है।असमर्थता की स्थिति मे एक मास अथवा एक पक्ष तक भी किया जा सकता है।इसमे व्रती उपर्युक्त समय मे से किसी एक समय तक जल का अयाचित व्रत करे।व्रतान्त मे किसी ब्राह्मण को जलपूर्ण कलश ; अन्न ; वस्त्र ; घृत ; सप्तधान्य ; तिलपात्र और सुवर्ण प्रदान करे।इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य एक कल्प तक ब्रह्मलोक मे निवास करता है।उसके बाद पुण्य क्षीण होने पर पृथ्वी पर चक्रवर्ती सम्राट बनता है।

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