Wednesday, 28 September 2016

या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

          संसार के प्रत्येक प्राणी की सार्थकता तभी तक है ; जब तक उसमे प्राण है।प्राण-विहीन शरीर तो शव बन जाता है।प्राण विद्यमान होने के कारण ही वह प्राणी कहलाता है।शरीर मे जब तक प्राण रहता है ; तभी तक उसमे चेतना रहती है।यह बात अलग है कि वह चेतना न्यूनाधिक हो सकती है किन्तु प्राण रहते चेतना का पूर्ण अभाव संभव नहीं है।दूसरे अर्थों मे चेतना ही प्राण है।शरीर की यह चेतना उस परमाराध्या भगवती के अस्तित्व का ही द्योतक है।अतः स्पष्ट है कि वह देवी समस्त प्राणियों मे चेतना रूप मे विद्यमान है।इसलिए उन्हें बारंबार नमस्कार है ---
   या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते।
   नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

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