Thursday, 14 April 2016

शिव -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

           समस्त देवी-देवताओं मे कल्याण स्वरूप भगवान शिव जी का महत्त्व सर्वोपरि है।उन्हें जगत् की सृष्टि ; स्थिति एवं लय का हेतु माना जाता है।प्रायः सभी सद्ग्रन्थों मे उनके नाम-स्मरण की महत्ता प्रतिपादित है।इस सन्दर्भ मे तो इतना तक कहा गया है कि जो लोग " शिव" इन दो अक्षरों के नाम का उच्चारण करते हैं ; वे स्वर्ग और मोक्ष दोनो प्राप्त कर लेते हैं ---
शिवेति द्वयक्षरं नाम व्याहरिष्यन्ति ये जनाः।
तेषां स्वर्गश्च मोक्षश्च भविष्यन्ति न चान्यथा।।
            अतः इस सर्वप्रद शब्द के विषय मे जिज्ञासा जागृत होनी स्वाभाविक है।वैसे तो शिव जी एवं उनके नाम के माहात्म्य को जानना मानवीय सामर्थ्य से परे है।फिर भी यहाँ उनके चरणार्विन्दों मे मन लगाने का प्रयास अवश्य किया जायेगा।
           शिव शब्द की सिद्धि शीङ् स्वप्ने धातु से हुई है।इसके अनुसार " शेरते प्राणिनो यत्र स शिवः " --- अर्थात् अनन्त पाप-ताप से पीड़ित प्राणी जहाँ चिरविश्राम के लिए शयन करते हैं ; उन्हें शिव कहा जाता है।प्राणी जब तक संसार मे रहता है तब तक वह किसी न किसी पाप-ताप से पीड़ित रहता है।किन्तु मृत्यु के बाद उसे चिरशान्ति एवं विश्राम की प्राप्ति होती है।प्राणी की चिरविश्राम स्थली को ही शिव कहा जाता है।यही तथ्य एक अन्य व्युत्पत्ति से भी प्रकट होता है ; जिसमे शिव जी को जगत् का अधिष्ठान बताया गया है - " शेते जगदस्मिन्निति शिवः "।
            सामान्यतः शिव शब्द मे श इ व -- ये तीन अक्षर होते है।इनमे से शकार को नित्य सुख और आनन्द का वाचक माना जाता है।इकार को पुरुष और वकार को अमृत स्वरूपा शक्ति माना जाता है।इन तीनों का सम्मिलित स्वरूप ही शिव कहलाता है --
शं नित्यसुखमानन्दमिकारः पुरुषस्मृतः।
वकारः शक्तिरमृतं मेलनं शिव उच्यते।।
         अतः स्पष्ट है कि शिव जी का नाम स्मरण करने से प्राणी को अमरत्व सहित परमानन्द की प्राप्ति सहज ही हो जाती है।इसमे कोई सन्देह नहीं रहता है।इसका मुख्य कारण यही है कि इस शब्द मे ही वह शक्ति उर सामर्थ्य विद्यमान है।
         शिव शब्द प्रबल त्रिताप नाशक है।इसका उच्चारण करने से मनुष्य के दैहिक ; दैविक और भौतिक ताप नष्ट हो जाते हैं।यहाँ शकार शयन का ; इकार सर्वाभीष्ट की उपलब्धि का और वकार अमृत बीज का वाचक है।यह तो सर्वविदित है कि मनुष्य जब शयन करता है तब उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।शिव शब्द मे विद्यमान शकार दैहिक ताप का निवारण करता है।इकार अभीष्ट सिद्धि कराकर मनुष्य के सभी भौतिक कष्ट दूर कर देता है।अमृतबीज भगवान का अनुग्रह प्राप्त होने पर सभी दैविक ताप नष्ट हो जाते हैं।अतः इन तीन महान गुणों से युक्त " शिव " का स्मरण मात्र करने से मनुष्य के दैहिक ; दैविक और भौतिक ताप का विनाश हो जाता है।
           शिव शब्द मे असंख्य पापों को नष्ट कर मुक्ति प्रदान करने की असीम शक्ति विद्यमान है।इसका कारण यह है कि शिव शब्द मे विद्यमान "शी" का अर्थ है -- पापनाशक।"व" का अर्थ है -- मुक्तिप्रदाता।अतः जो जीवन भर की पापराशि का विनाश कर अन्त मे मुक्ति प्रदान करते हैं ; उन्हें शिव कहा जाता है।शि का अर्थ मंगल भी होता है।अतः प्राणि मात्र को मंगल प्रदान करने वाले सर्वेश्वर को शिव कहा जाता है।
          इस प्रकार स्पष्ट है कि " शिव " शब्द ही परम कल्याणकारी ; पुण्यदायक ; पापनाशक ; मोक्षदायक एवं परमानन्द-दायक है।इसके स्मरण मात्र से ही मनुष्य भोग और मोक्ष दोनो प्राप्त कर लेता है।अतःहम सबका परम कर्तव्य है कि अहर्निश इसका स्मरण करते रहें।इसी मे सबका कल्याण निहित है।

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