पेड़-पौधों मे देवी-देवताओं का वास मानते हुए उनका पूजन करना भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता है।इन पूज्य वृक्षों मे बिल्व वृक्ष की विशिष्ट महत्ता है।इसे भगवान् शिव जी का स्वरूप माना जाता है।इसलिए केवल मनुष्य ही नहीं अपितु देवताओं ने भी इसकी बारम्बार स्तुति की है।
बिल्ववृक्ष की महिमा अनन्त एवं अवर्णनीय है।तीनों लोकों मे जितने प्रसिद्ध पुण्यतीर्थ हैं ; वे सब बिल्व वृक्ष के मूल मे निवास करते हैं।इसलिए जो पुण्यात्मा मनुष्य बिल्वमूल मे लिंगस्वरूप अविनाशी महादेव जी का पूजन करता है ; वह निश्चित रूप से शिवपद को प्राप्त कर लेता है।जो व्यक्ति श्रद्धा-विश्वास पूर्वक गन्ध-पुष्प आदि से बिल्वमूल का विधिवत् पूजन करता है ;उसके सुख एवं सन्तति की वृद्धि सदैव होती रहती है।यदि कोई व्यक्ति बिल्वपत्रों द्वारा बिल्वमूल का पूजन करे तो उसके सम्पूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं।बिल्वमूल के समीप दीपक जलाने से मनुष्य तत्त्वज्ञान से युक्त होकर भगवान् शिव जी मे मिल जाता है।जो व्यक्ति बिल्ववृक्ष के नीचे बैठकर तीन रात तक निराहार रहते हुए शिव-नाम का एक लाख जप करता है ; वह भ्रूणहत्या सदृश घोर पापों से भी मुक्त हो जाता है।
बिल्व वृक्ष के सिञ्चन का असीम महत्व है।इसकी जड़ के समीप थाला बनाकर जल डालने से शिव जी बहुत प्रसन्न होते हैं।इससे जलदाता को शिव जी का परम अनुग्रह प्राप्त होता है।जो व्यक्ति बिल्वमूल के समीप के जल को अपने मस्तक पर लगाता है ; वह व्यक्ति समस्त पुण्यतीर्थों मे स्नान करने का फल प्राप्त कर लेता है।भगवान शिव जी की कृपा से वह विश्व का पवित्रतम व्यक्ति बन जाता है।
बिल्ववृक्ष के समीप दान देने का भी पर्याप्त महत्व है।जो व्यक्ति बिल्वमूल के समीप किसी एक शिवभक्त व्यक्ति को भोजन कराता है ; उसे करोड़ो व्यक्तियों को भोजन कराने का पुण्य प्राप्त होता है।जो व्यक्ति बिल्वमूल के समीप किसी शिवभक्त को खीर और घृतयुक्त अन्न प्रदान करता है ; वह व्यक्ति कभी दरिद्र नहीं होता है।उसके घर मे सदैव लक्ष्मी जी का वास बना रहता है।
Sunday, 3 April 2016
बिल्व वृक्ष -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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