बेल नामक वृक्ष के पत्तों को बिल्वपत्र कहा जाता है।इसमे अधिकांशतः तीन-तीन दल होते हैं किन्तु इससे अधिक दलों वाले भी मिलते हैं।ये तीन दल से लेकर ग्यारह दल तक के होते हैं।महत्व तो सभी बिल्वपत्रों का है किन्तु उसमे जितने अधिक दल होते हैं।उसका उतना अधिक महत्व होता है।
शिव जी को बिल्वपत्र बहुत प्रिय हैं।इसीलिए उनकी पूजन सामग्री मे बिल्वपत्र अनिवार्य माना गया है।उनके पूजन मे अन्य सामग्री न होने पर बिल्वपत्र ही पर्याप्त है।शिव जी बिल्वपत्र से ही सन्तुष्ट हो जाते हैं और अपने भक्तों की समस्त कामनायें पूर्ण कर देते हैं।
बिल्वपत्र के तीन दल त्रिनेत्र ; त्रिपुण्ड्र ; त्रिशूल आदि के प्रतीक हैं।इसमे तीन दल होते हुए भी तीनो एक ही मे जुड़े होते हैं।इससे सत्व ; रज ; तम नामक तीनों गुणों को सम करने का भी संकेत मिलता है।इन बिल्वपत्रों को समर्पित करने से मनुष्यों के भूत भविष्य और वर्तमान तीनों जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।इनके दर्शन एवं स्पर्श मात्र से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।सुन्दर बिल्वपत्र शिव जी को समर्पित करने से घोरातिघोर पाप भी तत्काल नष्ट हो जाते हैं।इतना ही नहीं ; बल्कि अखण्डित एवं शुद्ध बिल्वपत्रों द्वारा शिव-पूजन करने से करोड़ो कन्यादान करने के बराबर पुण्य प्राप्त होता है।
बिल्वपत्र तोड़ने का नियम ---
बिल्वपत्र तोड़ने के लिए वृक्ष के पास जाकर इस प्रकार प्रार्थना करे --
अमृतोद्भव श्रीवृक्ष महादेवप्रियः सदा।
गृह्णामि तव पत्राणि शिवपूजनार्थमादरात्।।
इसके बाद डाल पकड़ कर स्वच्छ एवं उत्तम पत्तियाँ उतार लें।
बिल्वपत्र चढ़ाने के नियम ---
शिव जी को समर्पित करने के पूर्व देख लेना चाहिए कि वे कटे फटे न हों।साथ ही उनमे वज्र एवं चक्र का चिह्न अंकित न हो।डंठल के मोटे भाग को वज्र कहा जाता है।इसलिए उसे तोड़ देना चाहिए।पत्ते के चिकने भाग मे श्वेत रंग के चिह्न को चक्र कहा जाता है।ऐसे चिह्नांकित पत्ते पूजन - योग्य नही होते हैं।बिल्वपत्रों को शिवलिंग पर अधोमुख चढ़ाना चाहिए।उसका चिकना भाग शिव लिंग की ओर होना चाहिए।इन्हें वैदिक अथवा पौराणिक मन्त्रों के साथ समर्पित करना चाहिए।यदि ये मन्त्र ज्ञात न हों तो केवल " ऊँ नमः शिवाय " कहते हुए ही चढ़ाना चाहिए।
बिल्वपत्र तोड़ने का निषिद्ध समय --
चतुर्थी ; अष्टमी ; नवमी ; चतुर्दशी ; अमावस्या ; संक्रान्ति-दिवस तथा सोमवार को बिल्वपत्र नहीं तोड़ना चाहिए।परन्तु शिव-पूजन मे बिल्वपत्र आवश्यक होते हैं।इसलिए इन तिथियों एवं दिनों के एक दिन पूर्व ही तोड़ लेना चाहिए।बिल्वपत्र कभी बासी नहीं होते हैं।इतना ही नहीं ; बल्कि नवीन बिल्वपत्र न मिलने पर शिव जी को चढ़ाये गये बिल्वपत्रों को ही धुलकर बार-बार चढ़ाया जा सकता है।इसमे कोई दोष नहीं होता है।किन्तु कटे ; फटे एवं तीन से कम दल वाले बिल्वपत्र नहीं चढ़ाना चाहिए।
Tuesday, 19 April 2016
बिल्वपत्र -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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