Thursday, 21 April 2016

हनुमान् जी -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

           प्राचीन काल मे पुञ्जिकस्थला नामक एक अप्सरा ने शापवश वानर-राज कुञ्जर की पुत्री के रूप मे अवतार लिया।उस समय उसका नाम अञ्जना हुआ।बाद मे वह वानर-राज केसरी की पत्नी हुई।वह इच्छानुसार रूप धारण करने समर्थ थी।
            एक दिन अञ्जना मानवी स्त्री का रूप धारण कर एक रमणीय पर्वत पर विहार कर रही थी।उसके अनिन्द्य रूप-लावण्य को देखकर वायुदेव काममोहित हो गये।उन्होने उस सुन्दरी को अपनी बाहों मे भरकर हृदय से लगा लिया।इससे भयभीत होकर अञ्जना ने पूछा कि तुम कौन हो ; जो मेरे पातिव्रत्य को नष्ट करना चाहते हो।पवनदेव ने कहा कि मैने अव्यक्त रूप से तुम्हारा आलिंगन करके मानसिक संकल्प के द्वारा तुम्हारे साथ समागम किया है।इससे तुम्हारा पातिव्रत्य नष्ट नहीं होगा।साथ ही तुम्हें एक महान् पराक्रमी एवं बुद्धिमान पुत्र प्राप्त होगा।वह धैर्य ; तेज ; बल ; पराक्रम; लांघने एवं छलांग मारने मे मेरे ही समान होगा।
          कुछ समय बाद अञ्जना ने गुफा मे एक दिव्य बालक को जन्म दिया।एक दिन उस बालक ने उदित होते हुए सूर्य को देखा।उन्होंने समझा कि यह भी कोई फल है।अतः उसे पाने के लिए आकाश मे छलांग लगा दी और सूर्य को पकड़ लिया।उसी समय देवराज इन्द्र ने कुपित होकर उस बालक पर वज्र से प्रहार कर दिया।इससे उनके हनु ( ठोड़ी ) का वाम भाग खण्डित हो गया।उसी समय से उन्हें हनुमान् ( खण्डित ठोड़ी वाले ) कहा जाने लगा।
           अपने औरस पुत्र को आहत देखकर वायुदेव क्रुद्ध हो गये।उन्होंने तीनो लोकों मे प्रवाहित होना बन्द कर दिया।इससे सर्वत्र हाहाकार मच गया।अतः सभी देवताओं ने वायुदेव से प्रार्थना की और हनुमान् जी को असंख्य वरदान प्रदान किये।इससे हनुमान् जी अजेय ; अवध्य ; अजर ; अमर और परम तेजस्वी हो गये।

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