त्रेतायुग के बाद द्वापर युग का आरम्भ होता है।इसकी उत्पत्ति माघ कृष्ण पक्ष अमावस्या शुक्रवार को धनिष्ठा नक्षत्र ; वरीयान् योग एवं वृष लग्न मे हुई थी।इसका परिमाण 2000 दिव्य वर्ष है।इसका सन्ध्याकाल और सन्धायांश काल 200 -- 200 दिव्य वर्षों का है।इस प्रकार इसकी कुल अवधि 2400 दिव्य वर्ष होती है।इसे मानवीय वर्षों मे परिवर्तित किया जाय तो द्वापर युग की अवधि 864000 मानव वर्ष होती है।
इस युग मे हिंसा ;असन्तोष ; असत्य और द्वेष नामक अधर्म के लक्षणों की वृद्धि होने लगती है।इसके परिणाम स्वरूप धर्म के चारों चरणों अर्थात् सत्य ; दया ; तप और दान का आधा अंश क्षीण हो जाता है।लोगों मे शारीरिक क्लेशों की अभिवृद्धि होने लगती है।उनमे मन-वचन-कर्म से बुद्धि-भेद उत्पन्न हो जाता है।सभी लोगों मे लोभ ; भृति ; वाणिज्य कर्मों मे विवाद होने लगता है।साथ ही चित्त-कालुष्य के कारण यथार्थ वस्तुओं के प्रति सन्देह उत्पन्न होने लगता है।इस प्रकार अधर्म के चारो चरणों का प्रभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित होने लगता है।इसके कारण पूर्व-स्थापित मान्यताओं एवं दिव्य परम्पराओं का लोप होने लगता है।
द्वापर युग मे व्यास जी का आविर्भाव होता है और वे वेदों का विभाजन करते हैं।इस युग मे सम्पूर्ण प्रजा जन मे राग ; द्वेष ; वासना ; लोभ ; मद आदि की प्रवृत्ति बढ़ जाती है।अनावृष्टि ; अकालमृत्यु ; विघ्न-बाधा एवं मन-वचन-कर्म जनित दुखों से लोगों मे निर्वेद उत्पन्न हो जाता है।इस प्रकार धर्म और अधर्म लगभग बराबर स्थिति मे रहते हैं।इसलिए समाज मे नाना प्रकार की समस्यायें एवं अभावग्रस्तता उत्पन्न होने लगती हैं।अत्याचारियों के आतंक बढ़ने लगते हैं।इससे सज्जनों को पीड़ा होना स्वाभाविक ही है।पर्याप्त अस्त-व्यस्तता की स्थिति आ जाती है।शान्ति एवं सुव्यवस्था का लोप होने लगता है।
पिछले द्वापर मे ये सम्पूर्ण विशेषतायें व्यापक रूप से व्याप्त थीं।उस समय कंस ; शिशुपाल आदि का अत्याचार अपने चरम पर पहुँच गया था।इसलिए भगवान का पूर्णावतार हुआ ; जिसे लीला पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण के नाम से जाना जाता है।उनके बड़े भाई बलराम के रूप मे शेषनाग जी का भी अवतार हुआ।इसी समय कृष्णद्वैपायन व्यास का आविर्भाव हुआ ; जिनके द्वारा महाभारत एवं अट्ठारहो महापुराणों का प्रणयन हुआ था।उस द्वापर को व्यतीत हुए कुल 5117 वर्ष हुए हैं।
Saturday, 16 April 2016
द्वापर युग-- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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