Saturday, 16 April 2016

कलियुग -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

           द्वापर के बाद कलियुग का आरम्भ होता है।इसकी उत्पत्ति भाद्रपद कृष्ण पक्ष त्रयोदशी रविवार को आश्लेषा नक्षत्र ; व्यतिपात् योग मे अर्धरात्रि के समय मिथुन लग्न मे हुई है।इसकी अवधि 1000 दिव्य वर्ष होती है।इसका सन्ध्याकाल 100 दिव्य वर्ष तथा सन्ध्यांश भी 100 दिव्य वर्ष होता है।इस प्रकार इसकी कुल अवधि 1200 दिव्य वर्ष या 432000 मानवीय वर्ष होती है।इस समय कलियुग का प्रथम चरण चल रहा है।इसका आरम्भ भगवान श्रीकृष्ण के अन्त एवं राजा परीक्षित के शासन-काल से हुआ है।अब तक इसके 5117 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं।
           इस युग मे अधर्म के चारो चरणों की वृद्धि हो जाती है।इसके परिणाम स्वरूप धर्म के चारो चरण क्षीण होने लगते हैं।उनका केवल चतुर्थांश ही बचता है।इसीलिए कहा जाता है कि कलियुग मे धर्म केवल एक चरण से रहता है।इससे अधर्म 75% रहता है और धर्म केवल 25% बचता है।कलियुग के अन्तिम चरण मे धर्म के शेष बचे चतुर्थांश का भी लोप हो जाता है।चारों ओर अधर्म एवं अनीति का बोलबाला हो जाता है।
          इस समय अधिकाँश लोग लोभी ;  दुराचारी ; कठोर-हृदय और विद्रोही हो जाते हैं।उनकी लालसा और तृष्णा बहुत अधिक बढ़ जाती है।अधिकाँश लोग  मायावी ; द्वेषी ; क्रोधी ; मन्दबुद्धि ; मिथ्याभाषी ; पाखण्डी ; निन्दक ; प्रमादी ; रोगी ; एवं नास्तिक हो जाते हैं।वे वेदों की प्रामाणिकता पर सन्देह करने लगते हैं।वे अधर्म का आचरण करते हुए धर्मच्युत एवं अनाचार-परायण हो जाते हैं।वे दूषित यज्ञ ; पठन-पाठन ; आचार-विचार मे लिप्त रहते हैं।शासक वर्ग प्रजा-रक्षण की अपेक्षा आत्म-रक्षण मे तत्पर रहता है।इस समय अन्न एवं कन्याओं का विक्रय होने लगता है।अकाल एवं अनावृष्टि के कारण दुर्भिक्ष उत्पन्न हो जाता है।अन्न ; फल ; रस आदि का उत्पादन कम हो जाता है।
           कलियुग मे भगवान के दो अवतारों का उल्लेख हुआ है।उनमे से एक बुद्धावतार हो चुका है।दूसरा अवतार भगवान कल्कि के रूप मे सम्भलपुर नामक स्थान पर विष्णुयश नामक ब्राह्मण के घर मे कलियुग के अन्तिम चरण मे होगा।यद्यपि कलियुग मे अनेक दोष हैं किन्तु एक गुण सर्वाधिक उल्लेखनीय है।वह यह है कि इस समय केवल भगवन्नाम-स्मरण मात्र से ही मानव की समस्त कामनायें पूर्ण हो जाती हैं और अन्त मे उसका उद्धार हो जाता है।

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