Friday, 8 April 2016

ध्रुवतारा --- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

           पृथ्वी से दृष्टगोचर होने वाले तारों मे ध्रुवतारा का नाम विशेष उल्लेखनीय है।यह आकाश मे उत्तर दिशा की ओर सप्तर्षि मण्डल के सीध उत्तर मे स्थित रहता है।रात्रि के समय प्रायः सभी तारे घूमते हुए से प्रतीत होते हैं।किन्तु ध्रुवतारा सदैव स्थिर रहता है।इसीलिए इसको ध्रुवतारा कहा जाता है। गर्मी के दिनों मे शाम के समय जब तारे निकल आयें ; तब ध्रुवतारा को आसानी से देखा जा सकता है।इसे ढूँढने का आसान ढंग यही है कि पहले सप्तर्षि मण्डल को देखें।उसके बाद चौकोर वाले हिस्से के ठीक उत्तर की ओर देखें।जो सबसे अधिक प्रकाशमय तारा हो ; वही ध्रुवतारा है।
              अन्य तारामण्डलों की भाँति ध्रुवतारा भी कई तारों का समूह है।परन्तु  पृथ्वी से अत्यधिक दूर होने के कारण केवल एक ही तारे के रूप मे दिखाई पड़ता है।वैज्ञानिकों ने पृथ्वी से ध्रुवतारा की दूरी 434 प्रकाश वर्ष माना है।जिस प्रकार सूर्य पृथ्वी से कई गुना बड़ा है किन्तु लगभग 15 करोड़ किमी की दूरी पर स्थित होने के कारण लगभग एक फुट का ही दिखाई पड़ता है।इसी प्रकार ध्रुवतारा सूर्य से भी कई गुना बड़ा है किन्तु पृथ्वी से दूर होने के कारण बहुत छोटा सा दखाई पड़ता है।
           जिस प्रकार सूर्य अत्यधिक प्रकाशमान है।उसके उदय होते ही चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश फैल जाता है।उसी प्रकार ध्रुवतारा भी बहुत अधिक प्रकाशमय है।इसे भयानक एवं विशाल प्रकाश-पुञ्ज माना जाता है।वह सूर्य से 2200 गुना अधिक प्रकाश वाला है।किन्तु पृथ्वी से  अत्यधिक दूरी पर  स्थित होने के कारण वह साधारण प्रकाश वाला ही दिखाई पड़ता है।
           ध्रुवतारा सदैव उत्तर दिशा मे ही रहता है।यह उत्तरी ध्रुव के समीप स्थित होने के कारण विश्व के प्रत्येक स्थान से उत्तर दिशा मे ही दिखाई पड़ता है।इसलिए इसकी सहायता से दिशाओं का परिज्ञान बड़ी आसानी से किया जा सकता है।प्राचीन काल मे देश-देशान्तर का भ्रमण करने वाले व्यापारी गण इसी के सहयोग से दिशाओं का ज्ञान करते थे।हमारे देश मे ध्रुवतारा को बहुत सम्मान के साथ स्मरण किया जाता है।उसका केवल खगोलीय एवं वैज्ञानिक महत्व ही नहीं ; बल्कि धार्मिक महत्व भी है।हमारी संस्कृति मे सूर्य चन्द्र की भाँति ध्रुवतारा भी बहुत पवित्र एवं पूज्य माना जाता है।

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