Thursday, 28 April 2016

एकादश रुद्रावतार -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

            शिव जी के असंख्य अवतारों मे एकादश रुद्रावतारों का विशेष महत्व है।ये सभी अवतार सुखप्रदाता एवं सुख के आवास हैं।इन रुद्रों के रूप मे स्वयं शिव ने ही देवताओं की कार्यसिद्धि के लिए अवतार लिया था।वे अब भी देवरक्षा हेतु स्वर्ग मे विराजमान रहते हैं।इन अवतारों की कथा का अध्ययन एवं श्रवण करने से असीम सुख की प्राप्ति होती है।अतः इस अवसर का लाभ हम सबको भी उठाना चाहिए।
          प्राचीन काल मे देवताओं और दैत्यों मे प्रायः संघर्ष होता रहता था।एक बार देवगण पराजित होकर अपने पिता महर्षि कश्यप के पास गये और अपनी व्यथा सुनाई।महर्षि ने उन्हें सान्त्वना दी और स्वयं शिव जी की आराधना करने के लिए काशी की ओर चल पड़े।वहाँ पहुँच कर उन्होंने गंगा स्नान किया और एक शिवलिंग की स्थापना करके घोर तप करना प्रारम्भ कर दिया।दीर्घकालीन तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी प्रकट हुए और उनसे वरदान मागने को कहा।कश्यप जी ने कहा कि मै अपने पुत्रों अर्थात् देवताओं के दुःख से बहुत दुःखी हूँ।अतः उनकी सहायता के लिए आप मेरे पुत्र के रूप मे अवतरित होने की कृपा करें।शिव जी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।
           कश्यप जी ने लौटकर देवताओं को सम्पूर्ण वृत्तान्त सुनाया।कालान्तर मे उनकी पत्नी सुरभी के उदर से शिव जी एकादश रूपों मे अवतरित हुए।वे ही एकादश रुद्र के रूप मे प्रसिद्ध हुए।उनके नाम इस प्रकार हैं -- कपाली ; पिंगल ; भीम ; विरूपाक्ष ; विलोहित ; शास्ता ; अजपाद ; अहिर्बुध्न्य ; शम्भु ; चण्ड और भव।ये सभी शिवस्वरूप होने के कारण अत्यन्त महान् एवं अर्चनीय हैं।

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