विश्व-कल्याण हेतु शिव जी के असंख्य अवतार हुए हैं।उनमे से आठ अवतार बहुत प्रसिद्ध हैं।इन्हें ही अष्टमूर्तियाँ कहा जाता है।ये अवतार मानव-मनोरथों को पूर्ण करने वाले और परम सुखदाता हैं।यह संसार शिव जी की इन्हीं अष्टमूर्तियों का ही स्वरूप है।जिस प्रकार एक सूत मे मणियों के दाने पिरोये रहते हैं ; उसी प्रकार यह संसार भी उन्हीं अष्टमूर्तियों मे व्याप्त होकर स्थित है।ये अष्टमूर्तियाँ शर्व ; भव ; रुद्र ; उग्र ; भीम ; पशुपति ; ईशान और महादेव के नाम से प्रसिद्ध हैं।इनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है --
1-- शर्वमूर्ति -- शिव जी का शर्व रूप विश्वम्भरात्मक स्वरूप है।यही चराचर विश्व को धारण करने वाला है।इसके द्वारा ही पृथ्वी अधिष्ठित है।नन्दी और कामधेनु इसी मूर्ति के स्वरूप हैं।इनकी आराधना के लिए " ऊँ शर्वाय क्षितिमूर्तये नमः " सर्वाधिक उपयुक्त मन्त्र है।
2-- भवमूर्ति -- यह भगवान शिव जी का सलिलात्मक स्वरूप है।यही समस्त जीवधारियों को जीवन प्रदान करता है।इसी के द्वारा जल अधिष्ठित है।इनकी उपासना " ऊँ भवाय जलमूर्तये नमः " इस मन्त्र से करनी चाहिए।
3-- रुद्रमूर्ति -- शिव जी की रुद्र नामक मूर्ति आँखों मे प्रकाश स्वरूप है।इसी के द्वारा मनुष्य संसार की विभिन्न वस्तुओं का अवलोकन करता है।अग्नि इसी के द्वारा अधिष्ठित है।इसका तेज असंख्य सूर्यों के समान अनन्त एवं असीम है।इनकी उपासना " ऊँ रुद्राय अग्निमूर्तये नमः " इस मन्त्र से करनी चाहिए।
4-- उग्रमूर्ति -- यह शिव जी का उग्रस्वरूप है।यह जगत् के बाहर भीतर विद्यमान रहता है।यही विश्व का भरण पोषण करता है और स्पन्दित होता है।इनकी उपासना " ऊँ उग्राय वायुमूर्तये नमः " से करनी चाहिए।
5-- भीममूर्ति -- यह शिव जी का सर्वव्यापी आकाशात्मक स्वरूप है।यही सबको अवकाश प्रदान करता है।आकाश इसी के द्वारा अधिष्ठित है।इसकी उपासना का मन्त्र " ऊँ भीमाय आकाशमूर्तये नमः " है।
6-- पशुपतिमूर्ति -- शिव जी का यह स्वरूप समस्त आत्माओं का अधिष्ठान है।यह सम्पूर्ण क्षेत्रों मे निवास करने वाला तथा जीवधारियों के भवपाश को काटने वाला है।क्षेत्रज्ञ इसी के द्वारा अधिष्ठित है।इसकी उपासना के लिए " ऊँ पशुपतये यजमानमूर्तये नमः " मन्त्र विशेष उपयुक्त है।
7-- ईशानमूर्ति -- शिव जी का स्वरूप साक्षात् सूर्यस्वरूप है।यही सम्पूर्ण जगत् को प्रकाशित करता है।यह द्युलोक मे भ्रमण करता रहता है।इसकी उपासना का मन्त्र " ऊँ ईशानाय सूर्यमूर्तये नमः " है।
8-- महादेवमूर्ति -- अमृतमयी रश्मियों से सम्पूर्ण विश्व को आह्लादित करने वाला चन्द्रमा ही शिव जी का महादेव स्वरूप है।इसकी उपासना " ऊँ महादेवाय सोममूर्तये नमः " से करनी चाहिए।
शास्त्रों मे शिव जी की इन अष्टमूर्तियों के पूजन का विशेष महत्त्व है।जिस प्रकार वृक्ष की जड़ को सींचने से उसकी शाखायें पुष्पित-पल्लवित होती हैं ; उसी प्रकार केवल शिव जी का ही पूजन करने से शिव स्वरूप सम्पूर्ण विश्व परिपुष्ट हो जाता है।जिस प्रकार पिता अपने पुत्र-पौत्र को देखकर हर्षित होता है ; उसी प्रकार विश्व को प्रसन्न देखकर शिव जी भी आनन्दित होते हैं।यदि मनुष्य किसी भी प्राणी को कष्ट देता है तो वह मानो शिव जी को ही पीड़ित कर रहा है।इसलिए समस्त जीवों पर दयादृष्टि रखते हुए भगवान् शिव जी की निरन्तर सेवा एवं आराधना करनी चाहिए।
Thursday, 28 April 2016
शिव जी की अष्टमूर्तियाँ -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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