शिव जी सर्वेश्वर एवं जगदीश्वर हैं।उन्होंने विविध कल्पों मे असंख्य अवतार ग्रहण किये हैं।उनके समस्त अवतारों का वर्णन करना मानव-सामर्थ्य से परे है।फिर भी उनके सद्योजात ; वामदेव ; तत्पुरुष ; अघोर एवं ईशान नामक पाँच अवतार विशेष प्रसिद्ध हैं।यहाँ सद्योजात नामक अवतार का संक्षिप्त वर्णन करते हुए उनके चरणार्विन्दों मे मन लगाने का प्रयास कर रहा हूँ।
शिव जी का प्रथम अवतार सद्योजात नाम से प्रसिद्ध है।यह अवतार श्वेतलोहित नामक कल्प मे हुआ था।उस समय ब्रह्मा जी अपने परमाराध्य परब्रह्म परमात्मा का ध्यान कर रहे थे।उसी समय एक कुमार प्रकट हुआ।वह श्वेत एवं लोहित वर्ण का था।उसने जटायें धारण कर रखी थीं।उसे देखकर ब्रह्मा जी कुछ देर तक मन ही मन विचार करते रहे।बाद मे ध्यानयोग के द्वारा उन्हें ज्ञात हुआ कि वह कुमार कोई अन्य नहीं ; बल्कि ब्रह्मरूपी परमेश्वर ही हैं।अतः ब्रह्मा जी उनकी वन्दना करने लगे।
ब्रह्मा जी की आराधना जब चरम पर पहुँची तो उन्हें ज्ञात हुआ कि सद्योजात कुमार के रूप मे स्वयं शिव जी ही प्रकट हुए हैं।अब तो ब्रह्मा जी के हर्ष का ठिकाना न रहा।वे अपनी सद्बुद्धि के द्वारा उन ब्रह्म के चिन्तन मे लीन हो गये।उसी समय चार अन्य यशस्वी कुमारों का प्राकट्य हुआ।वे सभी श्वेतवर्णीय ; परमोत्कृष्ट ; ज्ञानसम्पन्न ; महात्मा एवं ब्रह्मस्वरूप थे।वे सभी उनके शिष्य बने और सम्पूर्ण ब्रह्मलोक को व्याप्त कर लिया।इसके बाद सद्योजात स्वरूप शिव जी ने प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी को परम ज्ञान एवं सृष्टि-रचना की शक्ति प्रदान कर कृतकृत्य कर दिया।शिव जी का यह स्वरूप अत्यन्त महत्वपूर्ण है।यह प्राण ; उपस्थ ; गन्ध और पृथ्वी का अधीश्वर है।
Monday, 25 April 2016
शिव जी का सद्योजात अवतार -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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