Monday, 4 April 2016

व्रत के सामान्य नियम

           व्रत करने वाले व्यक्ति को निम्नलिखित नियमो का यथासंभव पालन अवश्य करना चाहिए ---
1- व्रत करने वाले को प्रातः स्नान ; तर्पण ; देवपूजन आदि नित्यकर्म अवश्य करना चाहिए।साथ ही धुले हुए स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए।
2- गुरु ; शुक्र के बालत्व ; वृद्धत्व ; एवं अस्तकाल तथा मलमास मे किसी व्रत का आरम्भ एवं उद्यापन नहीं करना चाहिए।यदि स्वयं मलमास का ही व्रत करना हो तो किया जा सकता है।
3- बार-बार जल पीने ; ताम्बूल-भक्षण ( धूम्रपान भी ) ; दिन मे सोने और मैथुन करने से व्रत भंग हो जाता है।
4- यदि व्रतकाल मे व्रती मूर्च्छित हो जाय तो उसे जल पिलाने से व्रतभंग नहीं होता है।
5- बाल ; वृद्ध ; रोगी एवं भयातुर के लिए पूर्ण नियम-पालन आवश्यक नहीं है।
6- जल ; मूल ; फल ; दूध ; हविष्य ; ब्राह्मण की इच्छा ; गुरु के वचन एवं औषधि-सेवन से व्रतभंग नहीं होता है।यहाँ औषधि का अभिप्राय आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों से है।हविष्य मे चरु ( होमावशिष्ट खीर ); भिक्षान्न ; सत्तू ; जौ ; शाक ; दूध-दही ; घी ; फल ; मूल आदि आते हैं।
7- व्रत मे दातौन वर्जित है।अतः जल और उँगली से दाँत साफ करना चाहिए।
8- विपत्ति अथवा असमर्थ होने पर पति ; पत्नी ;ज्येष्ठ पुत्र ; भाई ; पुरोहित ; मित्र आदि को प्रतिनिधि बनाकर उन्हीं से व्रत एवं पूजन कराना चाहिए।
9- व्रती को व्रतकाल मे दूसरे का अन्न नही खाना चाहिए अन्यथा व्रत का फल अन्नदाता को मिल जाता है।
10- प्रत्येक व्रत के बाद पारण एवं उद्यापन अवश्य करना चाहिए।
11- व्रतकाल मे क्षमा ; दया ; सत्य ; शौच ; दान ; इन्द्रय-निग्रह ; देवपूजन ; हवन ; संतोष ; अस्तेय ( चोरी न करना ) आदि नियमो का पालन आवश्यक है।

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