संसार मे जब-जब धर्म की हानि एवं दुष्टों का अत्याचार बढ़ता है ; तब-तब धर्म की स्थापना ; सज्जनो की रक्षा एवं दुष्टों का संहार करने के लिए भगवान विष्णु विविध प्रकार का शरीर धारण कर अवतार लेते हैं।यह अवतार मत्स्य ; कूर्म ; वाराह आदि रूपों मे हुआ है।किन्तु मानव रूप मे उनके अवतार सर्वाधिक हुए हैं।अतः यह जिज्ञासा होनी स्वाभाविक है कि उन्होने मानव रूप मे कई बार अवतार क्यों लिया ? इस सन्दर्भ मे देवीभागवत मे एक बहुत रोचक एवं शिक्षाप्रद आख्यान उपलब्ध है।
देवताओं और असुरों मे प्रायः संघर्ष होता रहता था।एक बार दैत्यगण पराजित होकर शुक्राचार्य की शरण मे गये।शुक्राचार्य ने उन्हें सान्त्वना देते हुए कहा कि मै मन्त्र-सिद्धि के लिए शिव जी के पास जा रहा हूँ।लौटने पर उस मन्त्र द्वारा तुम्हें शक्तिसम्पन्न एवं अपराजेय बना दूँगा।तब तक तुम लोग शान्तिपूर्वक यहीं निवास करो।इस प्रकार समझा कर वे शिव जी के पास चले गये।दैत्यगण वहाँ से कश्यप मुनि के आश्रम पर चले गये।
दैत्यों ने भक्त प्रह्लाद के माध्यम से देवताओं के पास सन्धि-प्रस्ताव भेज दिया।देवगण निश्चिन्त होकर क्रीडा एवं विलास मे संलग्न हो गये।बाद मे देवताओं को पता चला कि दैत्यगण हमारे साथ षड़यन्त्र कर रहे हैं।अतः उन्होने क्रुद्ध होकर दैत्यों पर चढ़ाई कर दी।दैत्यगण भागकर शुक्राचार्य की माता की शरण मे पहुँचे।पीछे से देवगण भी पहुँच गये और दैत्यों का वध करने लगे।शुक्राचार्य की माता ने दैत्यों की रक्षा करने के लिए अपने तप से देवताओं को निद्राग्रस्त कर दिया।उसी समय विष्णु जी ने देवताओं की रक्षा करने के लिए चक्र सुदर्शन से शुक्राचार्य की माता का शिर काट लिया।उसी समय शुक्राचार्य के पिता महर्षि भृगु आ गये।उन्होंने क्रोधान्ध होकर विष्णु को शाप दे दिया कि इस जघन्य अपराध के कारण तुम्हें पृथ्वी पर अनेक बार मानव रूप मे जन्म लेना पड़ेगा।इसी शाप के कारण भगवान को परशुराम ; राम ; कृष्ण आदि के रूप मे जन्म लेना पड़ा।
Saturday, 23 April 2016
विष्णु के मानव-अवतार क्यों हुए -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment