शिव जी के प्रमुख पञ्चावतारों मे सद्योजात ; वामदेव ; तत्पुरुष और अघोर नामक अवतारों का वर्णन किया जा चुका है।अब यहाँ उनके ईशान नामक पञ्चम अवतार का वर्णन करते हुए उनके चरण-कमलों मे मन लगाने का प्रयास किया जा रहा है।
शिव जी का ईशानावतार विश्वरूप नामक कल्प मे हुआ था।उस कल्प मे ब्रह्मा जी पुत्र-प्राप्ति की कामना से शिव जी का ध्यान कर रहे थे।उसी समय महान् सिंहनादिनी विश्वरूपा सरस्वती जी प्रकट हुईं।उसी प्रकार भगवान ईशान भी प्रकट हुए।उनका शरीर शुद्ध स्फटिक के समान अत्यन्त श्वेत वर्णीय था।वे सर्वाभरण- विभूषित ; अजन्मा ; सर्वव्यापी ; सर्वान्तर्यामी ; सर्वस्वप्रदाता ; सर्वस्वरूप ; सुरूप एवं अरूप थे।उन्हें देखते ही ब्रह्मा जी नतमस्तक हो गये।
बाद मे ब्रह्मा जी ने उनकी विधिवत स्तुति की।इससे प्रसन्न होकर शिव जी ने उन्हें सन्मार्ग का उपदेश दिया।उसी समय चार सुन्दर बालक भी उत्पन्न हुए ; जो जटी ; मुण्डी ; शिखण्डी और अर्धमुण्ड के नाम से प्रसिद्ध हुए।उन बालकों ने भी सद्धर्म का पालन करते हुए योगगति को प्राप्त किया।शिव जी का यह स्वरूप अत्यन्त महत्त्वपूर्ण एवं सबसे विशाल है।यह साक्षात् प्रकृति के भोक्ताक्षेत्रज्ञ मे निवास करता है।इसे कर्ण ; वाणी और सर्वव्यापी आकाश का अधीश्वर माना जाता है।
Wednesday, 27 April 2016
शिव जी का ईशानावतार -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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