आकाश के विभिन्न तारामण्डलों मे ध्रुवतारा का विशेष महत्व है।यह आकाश मे उत्तर दिशा की ओर सप्तर्षि-मण्डल के सीध मे स्थित रहता है।इस तारा का महत्व केवल वैज्ञानिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि धार्मिक दृष्टि से बहुत अधिक है।इसके नामकरण के विषय मे निम्नलिखित मत विशेष उल्लेखनीय हैं ---
1-- खगोलशास्त्रियों के अनुसार यह तारा उत्तरी गोलार्ध मे उत्तरी ध्रुव के सन्निकट स्थित है।इसीलिए इसको " ध्रुवतारा " ( Pole Star ) कहा जाता है।
2-- आकाश मे स्थित प्रायः सभी तारा मण्डल अपने-अपने परिभ्रमण पथ पर पूर्व से पश्चिम की ओर भ्रमण करते रहते हैं।इससे उनका स्थानान्तरण होता रहता है।परन्तु यह तारा सदैव अपने स्थान पर निश्चल ( ध्रुव ) रहता है।इसीलिए इसको ध्रुवतारा कहा जाता है।
3-- पौराणिक मान्यता के अनुसार इसका नामकरण महाराज उत्तानपाद के सुपुत्र ध्रुव के नाम पर हुआ है।इसकी संक्षिप्त कथा इस प्रकार है --
वर्तमान कल्प के प्रथम मनु स्वायम्भुव के पुत्र उत्तानपाद की सुरुचि और सुनीति नामक दो पत्नियाँ थीं।सुरुचि के पुत्र का नाम उत्तम और सुनीति के पुत्र का नाम ध्रुव था।राजा सुनीति की अपेक्षा सुरुचि और उसके पुत्र को अधिक स्नेह करते थे।एक दिन सिंहासनारूढ़ राजा की गोद मे उत्तम बैठा हुआ था।उसे देखकर ध्रुव ने भो गोद मे बैठने की इच्छा की।परन्तु राजा ने उन्हे नहीं बैठाया।विमाता सुरुचि ने भी दुत्कारते हुए भगा दिया।
ध्रुव अपनी माता के पास आये और सम्पूर्ण वृत्तान्त सुनाया।माता ने उन्हें सान्त्वना प्रदान की और सर्वफलप्रद पुण्य संचित करने को कहा।अतः पाँच वर्ष के बालक ध्रुव महलों के सुख को त्यागकर उपवन की ओर चल पड़े।वहाँ पूर्वागत सप्त मुनीश्वरों से भेंट हुई।ध्रुव ने मुनियों से अपनी व्यथा सुनाई।मुनियों ने उन्हें विष्णु पूजन पूर्वक " ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय " मन्त्र का जप करने का निर्देश दिया।
इसके बाद ध्रुव जी तप करने के लिए मधुवन चले गये।वहाँ उन्होंने कठोर तप आरम्भ कर दिया।उनके तप को देखकर इन्द्र ने अपने इन्द्रासन को छिनने के भय से उनकी समाधि भंग करने का प्रयास किया।किन्तु वे अडिग बने रहे।लगभग छः महीनों के बाद भगवान विष्णु जी प्रसन्न हो गये।वे ध्रुव के समक्ष प्रकट हुए और वरदान माँगने को कहा।ध्रुव ने भगवान की स्तुति करने के बाद कहा कि मै उस सर्वोत्तम और अव्यय स्थान को प्राप्त करना चाहता हूँ ; जो सम्पूर्ण विश्व का आधारभूत हो।भगवान ने उन्हें सभी ग्रहों नक्षत्रों सप्तर्षियों एवं देवों से भी ऊपर वाले निश्चल स्थान को प्रदान किया।उन्हीं ध्रुव जी के प्रतीक-स्वरूप इस निश्चल तारा को ध्रुवतारा कहा जाता है।
Saturday, 9 April 2016
ध्रुवतारा का नामकरण -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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