शिव जी के प्रमुख पञ्चावतारों मे सद्योजात अवतार पर चर्चा की जा चुकी है।अब यहाँ वामदेव अवतार का वर्णन करते हुए प्रभुवर के चरणार्विन्दों मे मन रमाने का प्रयास किया जा रहा है।
बीसवें कल्प मे भगवान ब्रह्मा जी ने रक्तवर्ण का शरीर धारण किया था।इसलिए उस कल्प का नाम रक्तकल्प हुआ।उस कल्प मे ब्रह्मा जी पुत्र-प्राप्ति की कामना से ध्यान कर रहे थे।उसी समय उनसे एक पुत्र प्रकट हुआ।वह बालक रक्त वर्णीय माला एवं लाल वस्त्र धारण किये हुए था।उसके नेत्र एवं आभूषण भी रक्तवर्णीय थे।ब्रह्मा जी ने ध्यानस्थ होकर देखा तो उन्हें ज्ञात हुआ कि वह बालक कोई अन्य नहीं ; बल्कि वे वामदेव शिव हैं।अतः ब्रह्मा जी ने उन्हें प्रणाम कर उनकी स्तुति किया।
कुछ देर बाद उनके चार पुत्रों का आविर्भाव हुआ ; जो विरजा ; विवाह ; विशोक एवं विश्वभावन के नाम से प्रसिद्ध हुए।वे लोग भी लाल वस्त्र धारण किये हुए थे।ब्रह्मा जी की आराधना से प्रसन्न होकर वामदेव शिव ने उन्हें परम ज्ञान एवं सृष्टि-रचना करने की शक्ति प्रदान किया।इस प्रकार शिव जी का वामदेव अवतार हुआ था।शिव जी का यह स्वरूप अहंकार का अधिष्ठान है।यह सदैव अनेक प्रकार के कार्य करता है।यह रसना ; पायु ; रस और जल का स्वामी है।
Tuesday, 26 April 2016
शिव जी का वामदेव अवतार -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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