प्राचीन काल मे शिलाद नामक एक धर्मात्मा मुनि ने मृत्युहीन अयोनिज पुत्र प्राप्त करने के इन्द्र की आराधना की।इन्द्रदेव प्रकट तो हुए किन्तु उन्होंने इस प्रकार का पुत्र प्रदान करने मे असमर्थता जतायी।उन्होने इसके लिए शिव जी की आराधना करने का निर्देश दिया।
शिलाद मुनि ने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए तप आरम्भ किया।उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी प्रकट हुए और मुनि से वर माँगने को कहा।मुनिवर ने कहा कि मै आपके ही समान मृत्युहीन अयोनिज पुत्र चाहता सूँ।शिव जी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।कालान्तर मे यज्ञक्षेत्र को जोतते समय शिलाद मुनि के शरीर से एक बालक प्रकट हुआ।वह प्रलयकालीन सूर्य एवं अग्नि के समान प्रभावशाली था।वह त्रिनेत्र ; चतुर्भुज ; जटामुकुटधारी ; त्रिशूल आदि से युक्त और रुद्ररूप था।मुनि ने उन्हें प्रणाम करके कहा कि तुमने मुझे आनन्दित किया है।इसलिए तुम्हारा नाम नन्दी होगा।
मुनिवर उस बच्चे को अपने आश्रम पर ले गये तब वह बालक मानव स्वरूप हो गया।मुनि ने उसका जातकर्म आदि संस्कार किया।फिर पाँच वर्ष की अवस्था मे ही उसे सम्पूर्ण वेदों एवं शास्त्रों का सांगोपांग अध्ययन करवा दिया।जब वह बालक सात वर्ष का हुआ तब मित्र और वरुण नामक मुनियों ने बताया कि इस बच्चे की आयु अब केवल एक वर्ष बची है।इसे सुनते ही शिलाद मुनि व्याकुल होकर रोने लगे।उस समय नन्दी ने अपने पिता को सान्त्वना देते हुए कहा कि आप दुःखी न हों।मै शिव जी की आराधना करके दीर्घायु एवं कालजयी बनूँगा।
नन्दीश्वर जी पिता से आज्ञा लेकर तप करने के लिए वन की ओर चल पड़े।उन्होने वन मे जाकर एकान्त स्थान पर आसन लगाया और देवाधिदेव सदाशिव का ध्यान करके रुद्रमन्त्र का जप आरम्भ कर दिया।शिव जी प्रसन्न होकर पार्वती सहित प्रकट हुए और वर माँगने को कहा।नन्दी उनके चरणों मे लेटकर स्तुति करने लगे।तब शिव जी ने कहा कि तुम्हें मृत्यु से भयभीत नहीं होना चाहिए क्योंकि तुम मेरे ही समान हो।अब तुम अजर ; अमर ; अव्यय एवं अक्षय होकर मेरे प्रियपात्र बनोगे।इतना कहकर शिव जी ने अपनी माला उतार कर नन्दी के गले मे डाल दी।उस माला के प्रभाव से नन्दीश्वर जी त्रिनेत्र ; दशभुज एवं द्वितीय रुद्र के समान हो गये।
इसके बाद शिव जी ने पार्वती जी से कहा कि मै नन्दी को सभी गणो का अध्यक्ष बनाना चाहता हूँ।इस विषय मे अपनी सहमति प्रदान करें।पार्वती जी ने कहा कि नन्दी मेरे पुत्र के समान है।अतः मै आपकी बातों से पूर्णतः सहमत हूँ।शिव जी ने अपने गणो को बुलाकर अभिषेक-सामग्री एकत्रित करने को कहा।बाद मे सभी देवताओं और मुनियों ने मिलकर नन्दी को गणाध्यक्ष पद पर अभिषिक्त किया।उसके बाद सुयशा नामक कन्या के साथ नन्दी का विवाह हो गया।नन्दी ने सबको प्रणाम कर शुभाशीष प्राप्त किया।उस समय शिव जी ने उन्हें वर दिया कि जहाँ मै रहूँगा ; वहीं तुम रहोगे और जहाँ तुम रहोगे ; वहाँ मै उपस्थित रहूँगा।इस प्रकार वरदान देकर शिव जी सपरिवार स्वस्थान को प्रस्थान कर गये।
Friday, 29 April 2016
नन्दीश्वर अवतार -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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