Tuesday, 5 April 2016

श्रीवृक्ष -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

            बिल्व वृक्ष को ही श्रीवृक्ष कहा जाता है।इस सन्दर्भ मे एक पौराणिक आख्यान उपलब्ध है।इसके अनुसार प्राचीन काल मे देवताओं एवं दैत्यों ने मिलकर समुद्र-मन्थन किया।समुद्र से लक्ष्मी जी प्रकट हुईं।उनके अनुपम सौन्दर्य एवं विशेषताओं के कारण वहाँ विद्यमान सब लोग उन्हें प्राप्त करना चाहते थे।इसलिए देवताओं एवं दैत्यों मे भयानक युद्ध आरम्भ हो गया।उस समय कुछ देर के लिए लक्ष्मी जी ने बिल्व वृक्ष का आश्रय ग्रहण किया था।इसीलिए उसको श्रीवृक्ष भी कहा जाता है।बाद मे विष्णु ने दैत्यों को पराजित कर लक्ष्मी जी का वरण किया था।
           यह वृक्ष अत्यन्त पवित्र एवं पुण्यदायक है।इसमे लक्ष्मी जी का वास होता है।इसका पूजन करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होकर अपने भक्तों की समस्त कामनायें पूर्ण कर देती हैं।श्रीवृक्ष का पूजन करने वाला व्यक्ति कभी निर्धन एवं दरिद्र नहीं होता है।वह हर प्रकार से सुखी ; सम्पन्न और आनन्दित रहता है।
           यह वृक्ष भगवान शिव जी का ही स्वरूप है।अतः इसके मूल को लिंगस्वरूप मानकर पूजन करने से मनुष्य की समस्त कामनायें पूर्ण हो जाती हैं।इसके मूल मे समस्त तीर्थों का वास होता है।इसलिए इसके थाले के जल को मस्तक पर लगाने से समस्त तीर्थों मे स्नान करने का पुण्य प्राप्त हो जाता है।
नोट -- शेष विवरण इसी ब्लाॅग मे  "बिल्व वृक्ष" लेख मे देखें।

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