यह तो सर्वविदित है कि ईश्वर एक है।वही इस जगत् मे विविध नामों एवं रूपों से विख्यात है।इसलिए भेद-बुद्धि से किसी देवी-देवता को ऊँचा-नीचा बतलाना उचित नहीं है।फिर भी सुविधा की दृष्टि से शिव जी का नाम स्मरण करना विशेष कल्याणप्रद है।वे स्वभाव से निर्गुण होते हुए भी सृष्टि की रचना ; स्थिति एवं लय के लिए क्रमशः ब्रह्मा ; विष्णु और रुद्र के रूप मे प्रकट होते हैं --
त्रिधा भिन्नो ह्यहं विष्णो ब्रह्मविष्णुहराख्यया।
सर्गरक्षालयगुणैर्निष्कलोऽपि सदा हरे।।
इस प्रकार स्पष्ट है कि समस्त देवों के मूल शिव जी ही हैं।अतःउन्हीं की उपासना करना अधिक श्रेयस्कर है।अन्यत्र भटकने की आवश्यकता नहीं है।अन्यथा जितना तर्क-वितर्क किया जायेगा ; भ्रम उतना ही अधिक बढ़ता जायेगा।इसलिए समस्त भ्रान्तियों से मुक्त होकर उस परब्रह्म परमेश्वर शिव का ही नाम स्मरण करना चाहिए।
शिव का अर्थ ही है कल्याण अथवा कल्याण करना।इसीलिए शिव जी प्राणि मात्र के कल्याण हेतु सदैव तत्पर रहते हैं।विश्व का कल्याण करना ही उनका स्वभाव है।देवगण भी जब जब विपत्ति मे पड़ते हैं ; तब-तब वे शिव जी का ही नाम लेते हैं।इसलिए समस्त कल्यार्थी आस्तिक जनो को चाहिए कि वे नित्य शिव जी का नाम स्मरण करें।क्योंकि शिव नाम स्मरण से ही कल्याण सम्भव है।
शिव जी आशुतोष एवं अवढर दानी हैं।वे स्वल्पातिस्वल्प आराधना से ही प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्तों की समस्त कामनायें पूर्ण कर देते हैं।वे केवल वरदान ही नहीं ; बल्कि अपना जीवन भी सौंप देते हैं।भस्मासुर प्रसंग मे यही तो हुआ था।आजकल के भागदौड़ भरे जीवन मे किसी के पास इतना समय नहीं है कि वह दीर्घकालीन व्रत या अनुष्ठान कर सके।वह थोड़े समय मे ही अधिकाधिक लाभ प्राप्त करना चाहता है।इस दृष्टि से उनके लिए शिव नाम स्मरण ही अधिक सरल एवं उपयुक्त है।
शिव जी परम शुद्ध ; बुद्ध एवं सनातन ब्रह्म हैं।वे ही सर्वपूज्य एवं सर्वेश्वर हैं।ब्रह्मा ; विष्णु आदि सभी देवगण उन्हीं का नाम स्मरण कर परम पद को प्राप्त हुए हैं।अतः मनुष्यों को भी चाहिए कि वे सभी भ्रान्तियों से ऊपर उठकर भगवान शिव जी का नाम स्मरण करते रहें।इसी से उन्हें भोग और मोक्ष दोनो की प्राप्ति हो जाती है।संसार की कोई भी ऐसी समस्या नहीं है ; जिसका समाधान शिवस्मरण से न हो सके।
शिव जी का नाम अमृत तुल्य है।जिस प्रकार देवताओं की जिह्वा मे अमृत का स्पर्श होते ही देवगण अजर अमर हो गये।उसी प्रकार जिस प्राणी की जिह्वा मे शिव जी के नाम का स्पर्श हो जायेगा ; वही अजर अमर हो जायेगा।इसमे तनिक भी सन्देह नहीं है।घोरातिघोर पापी भी इस विलक्षण नाम के स्पर्श से अमरत्व को प्राप्त कर सकता है।पुराणों मे इस प्रकार के असंख्य आख्यान उपलब्ध हैं।अतः हम सबको भी उस परम पवित्र एवं सर्वप्रद शिव-नामामृत का पान अवश्य करना चाहिए।
शिवपुराण मे स्पष्ट घोषणा की गयी है कि जो पापरूपी दावानल से पीड़ित हैं ; उन्हें शिव नाम रूपी अमृत का पान अवश्य करना चाहिए।पापों के दावानल से दग्ध होने वाले लोगों को उस शिवनामामृत के बिना शान्ति नहीं मिल सकती है।जो शिवनाम रूपी सुधा की वृष्टिजनित धारा मे अवगाहन कर रहे हैं ; वे संसार रूपी दावानल के बीच मे खड़े होने पर भी शोक के भागी कदापि नहीं होते हैं --
शिवनामामृतं पेयं पापदावानलार्दितैः।
पापदावाग्नितप्तानां शान्तिस्तेन विना न हि।।
शिवेति नामपीयूषवर्षाधारापरिप्लुताः।
संसारदवमध्येऽपि न शोचन्ति कदाचन।।
Thursday, 28 April 2016
शिव नामामृतम् -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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