कैलास पर्वत को देवाधिदेव ; भूतभावन ; भगवान शिव जी का आवास माना जाता है।उसके विषय मे अनेक अतिशयों की चर्चा की जाती है।यहाँ मै पौराणिक साक्ष्यों के आधार पर उस कैलास की स्थिति को स्पष्ट करने का प्रयास कर रहा हूँ।पुराणों मे वर्णित अनेक स्थान आज भी विद्यमान हैं।अतः उनके सहयोग से कैलास की वास्तविक स्थिति का अनुमान आसानी से हो जायेगा।
विष्णुपुराण के अनुसार इस भूमण्डल पर सात द्वीप हैं ; जो जम्बू ; प्लक्ष ; शाल्मल ; कुश ; क्रौञ्च ; शाक एवं पुष्कर नाम से प्रसिद्ध हैं।जम्बूद्वीप इन सब द्वीपों के मध्य मे स्थित है।इसी द्वीप के बीचो-बीच सुवर्णमय सुमेरु पर्वत है।इसी पर्वत के दक्षिण मे पहला देश भारत वर्ष है।
लिंगपुराण के अनुसार सुमेरु के पूर्व मे देवकूट नामक पर्वत है।यह पर्वत बड़ी-बड़ी चोटियों से युक्त ; मणिनिर्मित ; वृक्षमण्डित ; पुष्पपादप-युक्त ; पारिजात से परिपूर्ण ; पशु-पक्षी-पुष्प-सुस्वादु जल -निर्झर आदि से युक्त है।इस पर्वत के मध्य मे एक सुन्दर वन है ; जिसे भूतवन कहा जाता है।वहीं भगवान शिव जी का कान्तिमान निवास स्थान है।यह वन महामणियों से विभूषित ; स्वर्णदीवार से युक्त ; मणिमय सिंहासनो - उत्तम भवनो से युक्त ; ब्रह्मादि देवों द्वारा पूजित ; भूतगणों से संयुक्त ; नन्दीश्वर आदि विविध प्रमथों से सुशोभित ; देवताओं तथा महापरिषदों से नित्य परिपूर्ण रहता है।वहाँ देवता लोग भूतपति शिव की नित्य पूजा करते हैं।
यह शिखर दो भागों मे विभक्त है।यहीं देवाधिदेव शिव जी का विशाल भवन है।शिव जी उस भवन मे उमा तथा अपने गणों के साथ सदा विराजमान रहते हैं।वहीं मन्दाकिनी नामक नदी है।उसके उत्तर भाग मे शिव जी का वैदूर्यमणि-निर्मित सुन्दर भवन है।वहीं शिव जी निवास करते हैं।उसके पूर्व-दक्षिण मे कनकनन्दा के तट पर एक वन है।वहाँ भी कैलास तुल्य भवन मे शिव जी उमा एवं गणों के साथ क्रीडा करते हैं।कनकनन्दा के पश्चिमी तट पर रुद्रपुरी नामक नगर है।वहाँ भी शिव जी रहते हैं।उसे शिवालय कहा जाता है।
Wednesday, 20 April 2016
कैलास पर्वत -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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