भगवान विष्णु के सहस्र नामों मे एक सुप्रसिद्ध नाम " नारायण " भी है।उनका यह नाम पड़ने का एक प्रमुख कारण है।तत्त्वदर्शी मुनियों ने जल को " नारा " कहा है।वह नारा ही पूर्वकाल मे जिनका निवास स्थान रहा ; उन्हें नारायण कहा जाता है।अर्थात् नारा ( जल ) ही जिनका अयन ( घर ) है ; उन्हें नारायण कहा जाता है ---
आपो नारा इति प्रोक्ता मुनिभिस्तत्त्वदर्शिभिः।
अयनं तस्य ताः पूर्वं तेन नारायणः स्मृतः।।
इस सन्दर्भ मे एक कथा बहुत प्रसिद्ध है।जिस समय सृष्टि नहीं हुई थी और सम्पूर्ण चराचर जगत् नष्ट हो गया था।उस समय एकमात्र तत्सद् ब्रह्म की ही सत्ता थी।उन्हें ही सदाशिव के नाम से जाना जाता है।वे दीर्घ काल तक अकेले ही रहे।बाद मे उन्होंने अपने विग्रह से एक शक्ति की सृष्टि की ; जो अम्बिका ; उमा ; शिवा आदि नामों से विख्यात हुईं।कालान्तर मे शिव और शिवा ने सोचा कि हमे किसी दूसरे पुरुष की सृष्टि करनी चाहिए ; जो सृष्टि-संचालन मे योगदान कर सके।यह सोचकर शिव जी ने अपने वाम अंग से एक पुरुष को उत्पन्न किया ; जो विष्णु के नाम से प्रसिद्ध हुए।विष्णु ने शिव जी की आज्ञानुसार तप करना आरम्भ किया।तपस्या के परिश्रम से उनके अंगों से नाना प्रकार की जलधारायें निकलने लगीं।चारों ओर जल ही जल भर गया।उस समय थके हुए विष्णु ने उस जल मे दीर्घ काल तक शयन किया।इसीलिए उन्हें नारायण कहा जाता है।
Friday, 21 October 2016
विष्णु का नाम नारायण क्यों पड़ा -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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Very good
ReplyDeleteनवीन जानकारी । अति सुन्दर । धन्यवाद ।
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