संसार के प्रत्येक प्राणी मे तुष्टि का होना नितान्त आवश्यक है।विशेषकर मानव मे यदि तुष्टि या संतुष्टि विद्यमान है तो उसके जीवन की अधिकाँश चिन्ताओं एवं समस्याओं का समाधान स्वयमेव हो जाता है।शास्त्रों मे सन्तुष्टि को सर्वश्रेष्ठ धन माना गया है।हिन्दी कवियों ने भी कहा है -- " जब आवै संतोष धन सब धन धूरि समान "।आज के युग मे मनुष्य की आकाँक्षायें असीमित हो गयी है।उसे अपार धन प्राप्त होने पर भी सन्तोष नहीं है।वह अधिकाधिक धन सम्पत्ति प्राप्त करना चाहता है।वह सम्पूर्ण विश्व पर अपना आधिपत्य स्थापित करना चाहता है।वह इसी चक्कर मे दिन रात परेशान रहता है।इसलिए माता जी अपने सभी बच्चों मे सन्तुष्टि की अभिवृद्धि के लिए स्वयं ही तुष्टि रूप मे स्थित हैं।अतः उन परमेश्वरी को बारंबार नमस्कार है ---
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
Sunday, 2 October 2016
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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