प्राणि-मात्र मे कान्ति का विशेष महत्त्व है।कोई व्यक्ति जब अच्छा कार्य करता है और समाज के लोग उसकी प्रशंसा करते हैं ; तब उसके चेहरे की कान्ति खिल उठती है।त्रुटि पूर्ण अथवा अनैतिक कार्य करने पर कान्ति स्वयमेव मलिन हो जाती है।स्वस्थ ; समृद्ध एवं प्रसन्न रहने पर भी व्यक्ति कान्तिमान बना रहता है।मातेश्वरी दुर्गा जी अपने बच्चों से अत्यधिक स्नेह करती हैं।वे सदैव चाहती हैं कि हमारे बच्चे सदैव कान्तियुक्त बने रहें।इसीलिए वे सभी प्राणियों मे कान्ति रूप मे स्थित हैं।अतः ऐसी ममतामयी माँ को बारंबार नमस्कार है ----
या देवी सर्वभूतेषु कान्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
Sunday, 2 October 2016
या देवी सर्वभूतेषु कान्तिरूपेण संस्थिता -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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