श्रीदुर्गा सप्तशती मे देवताओं ने देवी जी की स्तुति करते हुए कहा है कि हे माता ! तुम इस जगत् का एकमात्र आधार हो ; क्योंकि पृथ्वीरूप मे तुम्हारी ही स्थिति है।देवि ! तुम्हारा पराक्रम अलंघनीय है।तुम्हीं जलरूप मे स्थित होकर सम्पूर्ण जगत् को तृप्त करती हो ----
आधारभूता जगतस्त्वमेका
महीस्वरूपेण यतः स्थितासि।
अपां स्वरूपस्थितया त्वयैत --
दाप्यायते कृत्स्नमलङ्घ्यवीर्ये।।
यहाँ ध्यातव्य है कि भगवती दुर्गा ही इस चराचर जगत् का एकमात्र आधार हैं।यह चराचर जगत् उन्हीं के आधार पर स्थित है।उसका मुख्य कारण यह है कि वे ही पृथ्वी रूप मे स्थित हैं और यह जगत् पृथ्वी पर ही स्थित है।इसलिए वे भगवती ही सम्पूर्ण जगत् का भार वहन कर रही हैं।जो देवी सम्पूर्ण पृथ्वी का भार वहन करने मे सक्षम है ; उनकी शक्ति और सामर्थ्य तो अनुपम होगी ही।इसलिए उनके पराक्रम का उल्लंघन करने वाला दूसरा कोई हो ही नहीं सकता है।वे भगवती जल रूप मे भी स्थित हैं।जल ही प्राणी का प्राण है।इस दृष्टि से वे भगवती दुर्गा ही प्राणि मात्र का जीवन हैं।अतः उन परमा देवी को कोटिशः नमन है।
Monday, 3 October 2016
आधारभूता जगतस्त्वमेका -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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