श्रीदुर्गा सप्तशती मे वर्णित विविध देवियों मे माता भुवनेश्वरी देवी का स्वरूप अत्यन्त दिव्य ; भव्य एवं मनमोहक है।उनके श्रीअंगों की आभा प्रभातकालीन सूर्य के समान है।जिस प्रकार प्रातःकालीन सूर्य स्वर्णिम एवं रक्तपीत वर्णीय होता है।उसी प्रकार माता जी का भी शरीर रक्तपीत वर्णीय है।उनके मस्तक पर चन्द्रमा का सुन्दर मुकुट विराजमान है।उभरे हुए स्तन उनके शारीरिक सौन्दर्य मे चार चाँद लगा रहे हैं।उनके मुखमण्डल पर तीन नेत्र विराजमान हैं।उनके मुख पर मुसकान की दिव्य छटा सदैव छायी रहती हैं।उनकी मन्द-मन्द मुसकान को देखकर सम्पूर्ण विश्व उनकी ओर आकर्षित हो जाता है।उनके हाथों मे अंकुश और पाश के साथ-साथ वरद एवं अभय मुद्रा भी विराजमान रहती है।अंकुश और पाश के द्वारा वे दुष्टों को नियन्त्रित ; प्रतिबन्धित एवं दण्डित करती हैं।वरद-मुद्रा के द्वारा अपने भक्तों को मनोवाँछित वर प्रदान कर अभय-मुद्रा द्वारा उन्हें अभय-दान देती हैं।अतः ऐसी परम दयालु वरदायिनी माता भुवनेश्वरी देवी का मै अहर्निश ध्यान करता रहता हूँ ----
ऊँ बालरविद्युतिमिन्दुकिरीटां
तुङ्गकुचां नयनत्रययुक्ताम्।
स्मेरमुखीं वरदाङ्कुशपाशा--
भीतिकरां प्रभजे भुवनेशीम्।।
Wednesday, 5 October 2016
माता भुवनेश्वरी देवी -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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