शुम्भ और निशुम्भ नामक असुरों के सन्दर्भ मे श्रीदुर्गा सप्तशती मे माता महासरस्वती के जिस स्वरूप का वर्णन किया गया है ; वह बहुत मनभावन है।उनकी मनोहर कान्ति शरत्कालीन शोभा सम्पन्न चन्द्रमा के समान अत्यन्त हृदयाकर्षक है।वे तीनों लोकों की एकमात्र आधारभूत हैं।उन्होंने अपने हाथों मे घण्टा ; शूल ; हल ; मूसल ; चक्र ; धनुष और बाण धारण कर रखा है।उन्होंने ही शुम्भ आदि महासुरों का विनाश किया था।उनका प्राकट्य भगवती गौरी के शरीर से हुआ है।ऐसी परमाराध्या आद्या भगवती महा सरस्वती देवी की मै निरन्तर भजन करता हूँ ----
ऊँ घण्टाशूलहलानि शङ्खमुसले चक्रं धनुः सायकं
हस्ताब्जैर्दधतीं घनान्तविलसच्छीतांशुतुल्यप्रभाम्।
गौरीदेहसमुद्भवां त्रिजगतामाधारभूतां महा-
पूर्वामत्र सरस्वतीमनुभजे शुम्भादिदैत्यार्दिनीम्।।
Tuesday, 4 October 2016
माता महासरस्वती -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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