Monday, 3 October 2016

विद्याः समस्तास्तव देवि भेदाः --- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

           परमेश्वरी दुर्गा ही एकमात्र परमाराध्या एवं परमपूज्या हैं।उन्होंने ही इस विश्व को व्याप्त कर रखा है।वे कण-कण मे व्याप्त हैं।सम्पूर्ण चराचर जगत् मे उन्हीं की सत्ता विराजमान है।संसार मे जितनी स्त्रियाँ हैं ; वे सब उन्हीं की मूर्तियाँ हैं।अतः सम्पूर्ण नारी जाति का सम्मान करना देवी जी की ही उपासना है।संसार मे जितनी भी विद्यायें हैं ; वे सब उन्हीं के भिन्न-भिन्न स्वरूप हैं।इस प्रकार उन भगवती की स्तुति कैसे की जाय ? क्योंकि वे तो स्तुति करने योग्य पदार्थों से परे एवं परा वाणी हैं।उनकी स्तुति मनुष्य के वश की नहीं है ---
   विद्याः समस्तास्तव देवि भेदाः
          स्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु।
   त्वयैकया पूरितमम्बयैतत्
           का ते स्तुतिः स्तव्यपरा परोक्तिः।।
          इस प्रकार मातेश्वरी दुर्गा ही समस्त विद्याएँ हैं।अतः विद्यार्थियों को चाहिए कि वे एकमात्र दुर्गा जी की ही स्तुति करें।इसी के द्वारा उन्हें समस्त विद्यायें प्राप्त हो जायेंगी।अन्य स्थलों पर चक्कर लगाने की आवश्यकता नहीं है।

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