Sunday, 2 October 2016

या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

           प्राणिमात्र के समस्त सद् गुणों मे दया की महत्ता सर्वोपरि है।प्रायः सभी सद्ग्रन्थों मे दया भाव की भूरि भूरि प्रशंसा की गयी है।इसीलिए सर्वत्र उल्लेख किया गया है -- जीवों पर दया करें।वस्तुतः दयाभाव ही एक ऐसा महान् गुण है ; जो दानव और मानव मे अन्तर करता है।जिसमे दयाभाव नहीं है ; वह मानव-शरीर पाते हुए भी दानव है।मातेश्वरी दुर्गा जी अपने सभी बच्चों को दयालु बनाये रखना चाहती हैं।विशेषकर वर्तमान परिस्थिति मे तो दया की और अधिक महत्ता है।इस समय केवल दयाभाव की कमी के कारण ही मानव ने दानव का रूप धारण कर लिया है।अतः दयाभाव की अभिवृद्धि के लिए प्राणिमात्र मे दया रूप मे स्थित जगदम्बा की उपासना नितान्त आवश्यक है।उनकी लेशमात्र कृपा से जीवन धन्य हो जायेगा।अतः उन दया स्वरूपिणी माता को बारंबार नमस्कार है ----
   या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता।
   नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

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