श्रीमार्कण्डेय पुराण मे आद्या भगवती दुर्गा जी के चरित्र का वर्णन करते समय अनेक देवियों के दिव्य स्वरूपों का उल्लेख किया गया है।उसी सन्दर्भ मे वर्णित माता शिवा देवी का स्वरूप बहुत प्रभाव पूर्ण है।मातेश्वरी शिवा देवी की कान्ति उदय कालीन सूर्यमण्डल के समान अत्यन्त देदीप्यमान है।उनके मुखमण्डल पर तीन नेत्र विराजमान हैं।उन्होंने अपनी चारों भुजाओं मे अंकुश और पाश के साथ वर एवं अभय मुद्रा भी धारण कर रखा है।अतः स्पष्ट है कि अंकुश और पाश के द्वारा दुष्ट दैत्यों को नियन्त्रित कर दण्डित किया जाता है।वरमुद्रा के द्वारा भक्तों को श्रष्ठ वरदान तथा अभय मुद्रा द्वारा उन्हें अभय दान दिया जाता है।अतः ऐसी दिव्य-स्वरूपिणी और वरदायिनी माता शिवा देवी का मै निरन्तर ध्यान करता रहता हूँ ----
ऊँ बालार्कमण्डलाभासां
चतुर्बाहुं त्रिलोचनाम्।
पाशाङ्कुशवराभीतीर्
धारयन्तीं शिवां भजे।।
Wednesday, 5 October 2016
माता शिवा देवी -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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