आद्या भगवती दुर्गा जी की अनेकविध विशेषताओं मे उनकी शरणागत-वत्सलता विशेष उल्लेखनीय है।एक बार जो उनकी शरण मे आ जाता है ; उसका सर्वविध कल्याण हो जाता है।उसके पास किसी भी प्रकार की विपत्ति नहीं आ पाती हैं।देवी जी उसकी समस्त विपत्तियों का विनाश कर देती हैं।संसार की कोई ऐसी विपत्ति है ही नहीं ; जो दुर्गा जी के शरणागत के पास जा सके।जो व्यक्ति उनकी शरण मे पहुँच जाता है ; वह स्वयं सुरक्षित होने के साथ-साथ दूसरों को भी शरण देने वाला बन जाता है।
दुर्गा जी अपने भक्तों की परम हितकारिणी हैं।जब वे किसी पर प्रसन्न होती हैं ; तब उसके समस्त कायिक ; मानसिक आदि रोगों का विनाश कर देती हैं।अपने कृपा पात्र को स्वस्थ और निरोग बनाये रखना ; उनका स्वभाव है।इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को रोगनाशन हेतु एकमात्र दुर्गा जी की ही शरण ग्रहण करनी चाहिए।उनकी उपासना मे सावधानी भी नितान्त आवश्यक है।यदि भक्त ने अपने असत् आचरण से उन्हें रुष्ट कर दिया ; तब तो वे सभी मनोवाँछित कामनाओं को नष्ट कर देती हैं।परन्तु वे दयालु बहुत हैं।यदि पूर्ण श्रद्धा-भक्ति के साथ उनकी उपासना की जाय तो हर प्रकार का कल्याण होना सुनिश्चित है ----
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा
रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।।
Wednesday, 5 October 2016
शरणागतवत्सला दुर्गा जी -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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