पौराणिक मान्यता के अनुसार सृष्टिविधान मे मूलप्रकृति का सर्वोपरि महत्त्व है।इसमे " प्र " अक्षर प्रकृष्ट का और " कृति " सृष्टि का बोधक है।इसलिए जो देवी सृष्टि प्रक्रिया मे प्रकृष्ट हैं ; उन्हें प्रकृति कहा जाता है।ये सदैव सृष्टिकार्य मे संलग्न रहती हैं।पूर्वकाल मे सृष्टि-संरचना की इच्छा से स्वयं परमात्मा ही योगमाया का आश्रय लेकर दो भागों मे विभक्त हो गये।उनका दक्षिण भाग पुरुष और वाम भाग प्रकृति कहलाया।उसी समय सृष्टि-संरचना के उद्देश्य से परमात्मा की इच्छा से भगवती मूलप्रकृति प्रकट हो गयीं।बाद मे वे ही पाँच रूपों मे अवतरित हुईं ; जो गणेश-जननी दुर्गा ; लक्ष्मी ; सरस्वती ; सावित्री और राधा के नाम से प्रसिद्ध हुईं।
1--- गणेश-जननी --- ये शिवप्रिया तथा शिवस्वरूपा हैं।ब्रह्मादि देवता ; ऋषि ; मुनि आदि सभी इनकी स्तुति करते हैं।वे ही सबकी अधिष्ठात्री देवी ; सनातनी एवं शिवस्वरूपा हैं।ये यश ; कल्याण ; सुख ; प्रसन्नता एवं मोक्ष प्रदान करने वाली हैं।शोक ; दुःख ; संकट आदि का विनाश करना इनका स्वभाव है।ये शरणागत एवं आर्तजनों की रक्षा करने वाली ; ज्योतिस्वरूपा ; परम तेजस्विनी और ब्रह्मतेज की अधिष्ठात्री हैं।ये सर्व शक्ति स्वरूपा और भगवान महेश्वर की शाश्वत शक्ति हैं।ये ही सिद्धिरूपा ; सिद्धेश्वरी तथा साधकों को सिद्धि प्रदान करने वाली हैं।
2-- महालक्ष्मी --- ये भी परमात्मा की ही शक्ति हैं।ये सर्व सम्पत्स्वरूपिणी एवं सम्पत्तियों की अधिष्ठात्री देवी हैं।ये अत्यन्त शोभामयी ; अति संयमी ; सुशीला और सर्व मंगलस्वरूपा हैं।इनमे लोभ ; मोह ; काम ; क्रोध आदि का लेशमात्र स्पर्श नहीं है।ये सर्वश्रेष्ठ पतिव्रता ; स्वामिप्रिय ; प्रियवादिनी एवं धन-धान्य की अधिष्ठात्री देवी हैं।ये वैकुण्ठ मे भगवान विष्णु की सेवा मे सदैव तत्पर रहती हैं।वे स्वर्ग मे स्वर्गलक्ष्मी ; राजाओं मे राजलक्ष्मी ; गृहस्थों के यहाँ गृहलक्ष्मी और समस्त प्राणियों एवं पदार्थों मे शोभा के रूप मे विराजमान रहती हैं।ये पुण्यात्माओं मे कीर्ति रूप मे ; राजपुरुषों मे प्रभा रूप मे ; व्यापारियों मे वाणिज्य रूप मे और पापियों मे कलह रूप मे विद्यमान रहती हैं।
3-- महा सरस्वती --- ये परमात्मा की वाणी हैं।इन्हें विद्या ; बुद्धि एवं ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी होने का गौरव प्राप्त है।ये मनुष्यों को विद्या ; बुद्धि ; मेधा ; प्रतिभा ; स्मृति एवं कवित्व शक्ति प्रदान करने वाली हैं।ये बोधरूपिणी एवं समस्त सन्देहों को दूर करने वाली हैं।ये विचारकारिणी ; ग्रन्थकारिणी ; शक्तिस्वरूपिणी ; संगीत की कारण रूपा ; वाणीस्वरूपा , शान्तिस्वरूपा ; वीणा-पुस्तक-धारिणी एवं हरिप्रिया हैं।इनकी अंगकान्ति हिम ; चन्दन ; चन्द्रमा आदि की भाँति अत्यन्त शुभ्रवर्णीया है।ये तपःस्वरूपा एवं तपस्वियों को तप-फल प्रदात्री हैं।
4-- सावित्री ---- ये वेद- वेदांगों ; छन्दों ; सन्ध्या-वन्दन के मन्त्रों एवं समस्त तन्त्रों की जननीस्वरूपा हैं।ये जपरूपिणी ; तपस्विनी ; तेजरूपिणी ; संस्काररूपिणी तथा ब्रह्मप्रिया गायत्री हैं।इनकी कान्ति शुद्ध स्फटिक के समान है।ये शुद्ध सत्वगुणमयी ; सनातनी ; पराशक्ति एवं परमानन्द-स्वरूपा हैं।इनके चरण-स्पर्श मात्र से यह संसार परम पवित्र हो जाता है।
5--- राधा ---- ये पंच प्राणों की अधिष्ठात्री ; पंच प्राणस्वरूपा ; सर्व गुणसम्पन्ना ; सौभाग्य-मानिनी एवं श्री कृष्ण की वामांगार्ध-स्वरूपा हैं।ये श्री कृष्ण की रासक्रीडा की अधिष्ठात्री देवी हैं।ये रासेश्वरी ; गोलोकवासिनी ; गोपी वेष धारिणी ; निर्गुणा ; निराकारा एवं निर्लप्ता हैं।इन्होंने वाराहकल्प मे व्रजमण्डल वासी वृषभानु-लली के रूप मे अवतार लिया था।ये श्री कृष्ण के वक्षःस्थल मे उसी प्रकार सुशोभित होती हैं ; जैसे नवीन मेघों के बीच विद्युत् लता सुशोभित होती है।
Sunday, 9 October 2016
पञ्चविध मूलप्रकृति -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment