प्राचीन काल मे महिषासुर ने देवताओं को पराजित कर इन्द्रासन पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था।उस समय देवताओं ने ब्रह्मा जी के नेतृत्व मे भगवान शंकर एवं विष्णु से उस असुर का संहार करने का निवेदन किया।तब शिव आदि देवताओं के शरीर से महान् तेज निःसृत हुआ।सभी देवताओं से निःसृत तेज आपस मे मिलकर एक हो गया।वह तेजपुञ्ज शीघ्र ही एक नारी के रूप मे परिणत हो गया।बाद मे उन्हीं देवी ने महिषासुर का मर्दन किया था।
महिषासुर मर्दिनी महालक्ष्मी का स्वरूप अत्यन्त भव्य ; दिव्य एवं मनोहर है।वे सदैव कमलासन पर विराजमान रहती हैं।उनके मुखारविन्द पर सदैव मुसकान विराजमान रहती है।वे अपने हाथों मे अक्षमाला ; फरसा ; गदा ; बाण ; वज्र ; पद्म ; धनुष ; कुण्डिका ; दण्ड ; शक्ति ; खड्ग ; ढाल ; शंख ; घण्टा ; मधुपात्र ; शूल ; पाश और चक्र धारण करती हैं।अतः ऐसे मनोहर स्वरूप वाली मातेश्वरी महालक्ष्मी का मै भजन करता हूँ ----
ऊँ अक्षस्रकपरशु गदेषुकुलिशं पद्मं धनुष्कुण्डिकां
दण्डं शक्तिमसिं च चर्म जलजं घण्टां सुराभाजनम्।
शूलं पाशसुदर्शने च दधतीं हस्तैः प्रसन्नाननां
सेवे सैरिभमर्दिनीमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थिताम्।।
Tuesday, 4 October 2016
महिषासुरमर्दिनी महालक्ष्मी -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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