आत्मरक्षा एवं आत्म कल्याण हेतु श्रीदुर्गा जी की उपासना का सर्वाधिक महत्त्व है।इनकी उपासना के लिए श्रीदुर्गा सप्तशती का विधिवत् पाठ करने का विधान है।इसके प्रत्येक मन्त्र मे अपूर्व शक्ति एवं सामर्थ्य है।सम्पूर्ण सप्तशती का पाठ करने मे समय अधिक लगता है।इसलिए केवल देवी कवच का ही प्रतिदिन पाठ किया जाय तो भी भक्त का निश्चित रूप से अभ्युदय होता है साथ ही सर्वतोभावेन रक्षा होती है।
इस कवच मे सर्वप्रथम अनेक देवियों का नमन किया गया है फिर उनसे रक्षा करने की प्रार्थना की गयी है।इसमे मानव-शरीर के विभिन्न अंगों मे एक-एक देवी को प्रतिष्ठित किया गया है और उनसे उन अंगों की रक्षा करने का अनुरोध किया गया है।इसमे विविध देवियों से समस्त दिशाओं से संरक्षित करने का अनुरोध किया गया है।उन देवियों से आयु ; धर्म ; यश ; कीर्ति ; लक्ष्मी ; धन ; विद्या आदि की रक्षा करने का निवेदन किया गया है।इसमे भक्त की यात्रा को मंगलमय बनाने ; कामनायें सिद्ध करने ; सर्वत्र विजय प्रदान करने ; अभीष्ट वस्तुओं की प्राप्ति कराने ; महान् ऐश्वर्य प्रदान करने ; सर्वत्र निर्भय बनाने और तीनों लोकों मे पूज्य बनाने की प्रार्थना की गयी है।
कवच के अन्त मे यह वचन दिया गया है कि जो व्यक्ति नियम पूर्वक तीनो सन्ध्याओं के समय श्रद्धा पूर्वक इसका पाठ करता है ; उसे दैवी कला प्राप्त होती है तथा वह तीनों लोकों मे कहीं भी पराजित नहीं होता है।इतना ही नहीं ; अपितु वह अपमृत्यु से रहित होकर सौ वर्षों से अधिक समय तक जीवित रहता है।मकरी ; चेचक ; कुष्ठ आदि सम्पूर्ण व्याधियाँ नष्ट हो जाती हैं।उस पर विषैले पदार्थों एवं विषैले जीवों से भय नहीं होता है।उसके ऊपर मारण ; मोहन आदि अभिचारों ; मन्त्र-यन्त्र आदि का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है।जो व्यक्ति अपने हृदय मे इस कवच को धारण करता है ; उसे देखते ही भूत ; प्रेत ; पिशाच ; यक्ष ; गन्धर्व ; राक्षस ; ब्रह्मराक्षस ; बेताल ; भैरव ; डाकिनी ; शाकिनी आदि भयभीत होकर भाग जाते हैं।
यह कवच मनुष्य के तेज ; कीर्ति ; सुयश आदि की वृद्धि करता है।इतना ही नहीं बल्कि जब तक यह पृथ्वी रहती है ; तब तक उसकी सन्तान परम्परा विद्यमान रहती है।वह यावज्जीवन नाना प्रकार के भोगों का भोगकर अन्त मे भगवती महामाया की कृपा से उस नित्य परम पद को प्राप्त करता है ; जो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है।वह सुन्दर दिव्य रूप धारण करके कल्याणमय शिव जी के साथ आनन्द का भागी होता है।अतः प्रत्येक आस्तिक व्यक्ति को चाहिए कि वह नित्य इस महान् महिमामय कवच का पाठ करे।
Monday, 3 October 2016
दुर्गा-कवच माहात्म्य --- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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