आद्या भगवती दुर्गा जी के विविध स्वरूपों मे जगदम्बा महाकाली का स्वरूप अत्यन्त दिव्य और भव्य है।उनके दस हाथ हैं।उन्होंने उन हाथों मे खड्ग ; चक्र ; गदा ; बाण ; धनुष ; परिघ ; शूल ; भुशुण्डि ; मस्तक और शंख धारण कर रखा है।उनके तीन नेत्र हैं।उनका अंग-प्रत्यंग दिव्याभूषणों से विभूषित है।उनके शरीर की कान्ति नीलमणि के समान अत्यन्त चित्ताकर्षक है।उनके दस मुख और दस पैर हैं।इस दिव्य स्वरूप वाली भगवती महाकाली का प्रथम बार स्तवन भगवान ब्रह्मा जी ने किया था।उस समय भगवान विष्णु जी क्षीरसागर मे सो रहे थे और मधु तथा कैटभ का आतंक अपनी चरम सीमा पर था।अतः ब्रह्मा जी ने उन दोनों दैत्यों का संहार करने के लिए मातेश्वरी महाकाली की स्तुति की थी ; क्योंकि उस समय महाकाली के अतिरिक्त अन्य कोई भी देवी-देवता उन दैत्यों का संहार करने मे सक्षम नहीं था।ऐसी महिमामयी मातेश्वरी महाकाली देवी का मै सेवन करता हूँ ; उनकी सेवा करने के लिए प्रस्तुत हूँ -----
ऊँ खड्गं चक्रगदेषुचापपरिघाञ्छूलं भुशुण्डी शिरः
शङ्खं संदधतीं करैस्त्रिनयनां सर्वाङ्गभूषावृताम्।
नीलाश्मद्युतिमास्यपाददशकां सेवे महाकालिकां
यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधुं कैटभम्।।
Tuesday, 4 October 2016
मातेश्वरी महाकाली -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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