त्रिदेवों मे भगवान विष्णु का विशिष्ट महत्त्व है।पौराणिक मान्यता के अनुसार उनके तीन स्वरूप हैं ---
भगवान विष्णु का प्रथम स्वरूप अत्यन्त विलक्षण है।वाणी द्वारा उसका वर्णन करना नितान्त कठिन है।विद्वद्गण उसे शुक्ल अथवा शुद्धस्वरूप कहते हैं।भगवान का वह स्वरूप अत्यन्त दिव्य ; भव्य एवं ज्योतिःपुञ्ज से परिपूर्ण है।योगी गण उसी दिव्य स्वरूप की प्राप्ति मे लगे रहते हैं।वह स्वरूप सर्वगुणातीत और अत्यन्त विचित्र है।उसे ही वासुदेव कहा जाता है।वह रूप ; वर्ण आदि से नितान्त परे तथा परम शुद्ध एवं सर्वोत्तम अधिष्ठान-स्वरूप है।
भगवान का दूसरा स्वरूप शेष के नाम से जाना जाता है।वे तिर्यक्स्वरूप तामसी रूप हैं।वे पाताल लोक मे रहते हुए सम्पूर्ण पृथ्वी को अपने मस्तक पर धारण किये रहते हैं।
भगवान का तृतीय स्वरूप सम्पूर्ण प्रजाओं के पालन-पोषण मे तत्पर रहता है।वही इस संसार मे राम ; कृष्ण आदि के रूप मे अवतरित होकर धर्म-विध्वंशक असुरों का नाश एवं साधु-सन्तों की रक्षा करता है।
Friday, 21 October 2016
भगवान विष्णु के स्वरूप -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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