आद्या भगवती शक्ति के विविध स्वरूपों मे मातेश्वरी अन्नपूर्णा का पर्याप्त महत्व है।शास्त्रों मे इनके दिव्य स्वरूप का वर्णन किया गया है।इनके शरीर की कान्ति सिन्दूर के समान रक्तिम वर्ण की है।इनके मुखमण्डल पर तीन नेत्र सुशोभित हैं।इनका शरीर अमृतपूर्ण शशिकला के समान देदीप्यमान है।ये आकाशमण्डल मे गमन करने वाली हैं।इन्होंने रक्तवर्णीय सुन्दर वस्त्र धारण कर रखा है।इनका स्तनमण्डल उन्नत एवं स्थूल है।ये नवीन उल्लसित यौवनारम्भ के कारण अत्यन्त रमणीय हैं।इनका शरीर विविधविध अलंकरणों से सुशोभित है।इनके नेत्र कमल के समान अत्यन्त सुन्दर हैं।इनकी दिव्य मूर्ति अपने सौन्दर्य से चन्द्रमा को भी संक्रान्त करने वाली है।इनके हाथों मे पाश ; अंकुश ; अभय और वरद मुद्रा से सुशोभित हैं।मै ऐसी दिव्य स्वरूपिणी अन्नपूर्णा देवी को बारंबार नमन करता हूँ - सिन्दूराभां त्रिनेत्राममृतशशिकलां खेचरीं रक्तवस्त्रां
पीनोत्तुङ्गस्तनाढ्यामभिनवविलसद्यौवनारम्भरम्याम्।
नानालंकारयुक्तां सरसिजनयनामिन्दुसंक्रान्तमूर्तिः
देवीपाशाङ्कुशाढ्यामभयवरकरामन्नपूर्णां नमामि।।
Thursday, 6 October 2016
अन्नपूर्णा देवी -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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