नवरात्र व्रत का असीम महत्व है।इसलिए प्रत्येक कल्याणार्थी व्यक्ति को आश्विन और चैत्र मास के शुक्ल पक्ष मे विधिवत् नवरात्र व्रत अवश्य करना चाहिए।देवीभागवत महापुराण के अनुसार स्नानादि से पवित्र होकर ताम्रपत्र पर श्वेत चन्दन से षट्कोण यन्त्र ; अष्टकोण यन्त्र ; नवाक्षर मन्त्र लेखन कर वैदिक विधि से पूजन करना चाहिए।अथवा भगवती की धातुमयी प्रतिमा मे शिवतन्त्रोक्त विधि से या आगम शास्त्रोक्त विधि से पूजन करके नवाक्षर मन्त्र का सतत जप करे।जप का दशांश हवन ; उसका दशांश तर्पण एवं तर्पण का दशांश ब्राह्मण भोजन की व्यवस्था करनी चाहिए।प्रतिदिन तीनों चरित्रों का पाठ भी करना चाहिए।हवन के पूर्व कन्यापूजन भी करना चाहिए।
इस प्रकार देवी-पूजन करने से निर्धन को प्रचुर धन की ; रोगी को आरोग्य की ; पुत्रहीन को आज्ञाकारी पुत्र की और राज्यच्युत राजा को सार्वभौम राज्य की प्राप्ति होती है।भगवती की कृपा से शत्रु-पीड़ित व्यक्ति के शत्रुओं का विनाश हो जाता है।विद्यार्थियों को उत्तम विद्या की प्राप्ति होती है।इतना ही नहीं बल्कि जो भी स्त्री अथवा पुरुष श्रद्धा भक्ति पूर्वक नवरात्र व्रत करता है ; उसे सदैव मनोवाँछित फल की प्राप्ति होती है।इसमे कोई सन्देह नहीं है।जो मनुष्य आश्विन की नवरात्र व्रत करता है ; उसकी सभी कामनायें पूर्ण हो जाती हैं।
Sunday, 9 October 2016
नवरात्र व्रत का महत्त्व -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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