Saturday, 22 October 2016

कोणार्क-माहात्म्य -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

         विश्व प्रसिद्ध कोणार्क मन्दिर उड़ीसा प्रान्त के पुरी नामक जनपद मे भगवान जगन्नाथ-मन्दिर से लगभग 32 किमी उत्तर पूर्व दिशा मे समुद्र तट के समीप चन्द्रभागा नदी के किनारे स्थित है।पुराणों मे इसे कोणादित्य के नाम से वर्णित किया गया है।यह मन्दिर एक विशाल रथ के रूप मे निर्मित है।इसमे बारह जोड़ी पहिया लगी हैं।रथ को सात अश्व खींच रहे हैं।बनावट एवं सुन्दरता की दृष्टि से यह मन्दिर विश्व मे अद्वितीय स्थान रखता है।
         ब्रह्मपुराण के अनुसार यह भगवान सूर्यदेव का क्षेत्र है।यहाँ सहस्र किरणों से अलंकृत भगवान सूर्यदेव सदैव निवास करते हैं।इनका दर्शन करने से मनुष्य को भोग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति हो जाती है। माघ शुक्ल पक्ष सप्तमी तथा चैत्र शुक्ल पक्ष मे यहाँ सूर्य-पूजन करने से असीम पुण्यफल की प्राप्ति होती है।इसी प्रकार संक्रान्ति ; विषुव योग ; उत्तरायण-दक्षिणायन आरम्भ होने ; रविवार ; सप्तमी और पर्वों के दिन इनका दर्शन तथा पूजन करने से मनुष्य की समस्त कामनायें पूर्ण हो जाती हैं।वह समस्त सांसारिक सुखों को भोगकर अन्त मे सूर्यलोक को प्राप्त करता है।

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