Tuesday, 25 October 2016

मानव का सबसे बड़ा शत्रु राग -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

           शास्त्रों मे मानव-जीवन के लिए जो काम ; क्रोध ; लोभ आदि सब से घातक शत्रु बताये गये हैं ; उनमें " राग " का स्थान सर्वोपरि है।राग का अर्थ है -- अनुराग या प्रीति।मनुष्य के मन मे जब किसी सांसारिक वस्तु के प्रति राग या लगाव उत्पन्न हो जाता है तब काम की उत्पत्ति होती है।काम का अर्थ है -- इच्छा।अर्थात् मनुष्य मे उस वस्तु को प्राप्त करने की इच्छा उत्पन्न हो जाती है।काम से लोभ का जन्म होता है।लोभ से सम्मोह या अविवेक की उत्पत्ति होती है।यह तो निश्चित है कि जब लोभ का भूत सवार होता है तब व्यक्ति विवेकशून्य हो जाता है।फिर सम्मोह से स्मरण-शक्ति भ्रान्त हो जाती है।स्मृति के भ्रान्त होने से बुद्धि का विनाश हो जाता है।बुद्धि-विनाश के कारण मनुष्य स्वयं नष्ट हो जाता है।वह अपने कर्तव्यों से विमुख होकर कर्तव्य-भ्रष्ट हो जाता है ---
   रागात् कामः प्रभवति कामाल्लोभोऽभिजायते।
   लोभाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात् स्मृतिविभ्रमः।।
   स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात् प्रणश्यति।
               ( मार्कण्डेयपु0 3/71-72)
        इस प्रकार मानवजीवन मे विनाश के लिए राग ही सर्वाधिक उत्तरदायी होता है।यदि राग पर यथोचित नियंत्रण रखा जाय तो उसके विनाश की प्रक्रिया रुक सकती है।

6 comments: