Tuesday, 25 October 2016

ज्योतिष मे चन्द्रमा का महत्व -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

           भारतीय ज्योतिष के जातक प्रकरण मे सूर्य ; चन्द्र ; मंगल ; बुध ; गुरु ; शुक्र ; शनि ; राहु और केतु नौ ग्रहों की मान्यता है।यद्यपि प्राचीन आचार्यों ने राहु और केतु को महत्व नहीं दिया किन्तु वर्तमान काल मे इनका भी पर्याप्त महत्व है।सामान्य रूप से फलादेश मे इन समस्त ग्रहों का महत्व है किन्तु चन्द्रमा का महत्व कुछ अधिक है।यहाँ पर चन्द्रमा की महत्ता प्रदर्शित करने वाले कुछ प्रमुख विन्दुओं पर ही चर्चा की जा रही है।
1-- बच्चे के जन्म के समय चन्द्रमा जिस नक्षत्र पर स्थित होता है।वही नक्षत्र बच्चे का जन्म नक्षत्र माना जाता है।जब कि सूर्यादि सभी ग्रह किसी न किसी नक्षत्र पर होते हैं किन्तु बच्चे का जन्म नक्षत्र बताने मे  चन्द्रमा के अतिरिक्त अन्य किसी ग्रह के नक्षत्र का कोई महत्व नहीं होता है।
2-- नक्षत्रों के आधार पर ही राशि का निर्माण होता है।बच्चे के जन्म-काल मे चन्द्रमा जिस राशि पर होता है।वही राशि बच्चे की जन्म-राशि मानी जाती है।भारतीय मतानुसार इसी आधार पर राशिफल दिया और देखा जाता है।
3-- जन्मकुण्डली का फलादेश अधिकतर जन्म-लग्न के आधार पर किया जाता है।किन्तु अनेक स्थलों पर राशि चक्र के आधार पर भी फलादेश करने का विधान है।इसीलिए कुण्डली मे लग्न-कुण्डली के साथ चन्द्र-कुण्डली ( राशि चक्र ) भी दी जाती है।
4-- चन्द्रमा की उत्पत्ति विराटपुरुष के मन से हुई है --
चन्द्रमामनसोजातश्चक्षोः सूर्योऽअजायत।
          इसीलिए ज्योतिष मे चन्द्रमा को मन का स्वामी माना गया है।संसार के प्रत्येक प्राणी के क्रिया-कलाप पर मन का सर्वाधिक प्रभाव रहता है।प्रत्येक व्यक्ति अपने मन के अनुसार ही कार्य करता है।कभी-कभी वह मन के वशीभूत होकर समस्त नियमों एवं मर्यादाओं का भी उल्लंघन कर जाता है।इस आधार पर भी ज्योतिष मे चन्द्रमा की महत्ता स्वयमेव स्पष्ट है।
5-- चन्द्रमा कर्क राशि का स्वामी है।अतः कर्क लग्न मे जन्म लेने वाले व्यक्ति बहुत भावुक एवं सहृदय होते हैं।उनके प्रत्येक कार्य मे भावुकता का अंश स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है।कभी-कभी वे भावुकता के वश मे आकर ऐसा कार्य कर बैठते हैं ; जो उन्हें नहीं करना चाहिए।
6-- जन्माङ्ग मे अष्टम स्थान पर गया हुआ क्षीण चन्द्रमा सर्वाधिक घातक होता है।इतना घातक या प्रभावशाली अन्य कोई भी ग्रह नहीं होता है।
7-- ज्योतिष मे फलादेश करते समय विभिन्न योगों मे चन्द्रमा का योग विशेष रहा करता है।
8-- चन्द्रमा एक ऐसा ग्रह है ; जो राहु-केतु को छोड़कर अन्य किसी को भी अपना शत्रु नहीं मानता है।इतना तक कि बुध उसे अपना शत्रु मानता है किन्तु चन्द्रमा उसे अपना मित्र मानता है।बुध चन्द्रमा का ही पुत्र है।
9-- यदि सबल चन्द्रमा लग्न अथवा अन्य शुभ स्थान पर हो तो व्यक्ति को सर्वोच्च शिखर पर पहुँचा देता है।
10-- राहुकृत दोष को बुध शान्त करता है ; इन दोनों के दोषों को शनि शान्त कर देता है।राहु बुध और शनि के दोष को मंगल शान्त करता है तथा इन चारों के दोषों को शुक्र शान्त कर देता है।राहु बुध शनि भंगल तथा शुक्र के दोष को गुरु शान्त करता है।परन्तु इन छहों ग्रहों के दोषों को अकेले चन्द्रमा ही शान्त कर देता है।इस प्रकार चन्द्रमा का महत्व अन्य ग्रहों की अपेक्षा अधिक है।
11-- चन्द्रमा माता का कारक है।संसार मे माता से अधिक महत्व वाला कोई भी सम्बन्धी नहीं है।अतः उसके कारक ग्रह की महत्ता स्वयमेव सिद्ध है।

1 comment: