Saturday, 22 October 2016

रवि-पुष्य योग -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

         वार एवं नक्षत्र के सम्मिलन से बनने वाले योगों मे रवि-पुष्य योग का अद्वितीय महत्त्व है।रविवार को जब पुष्य नक्षत्र होता है ; तब रवि-पुष्य योग बनता है।इसमे रविवार और पुष्य नक्षत्र दोनों ही बहुत प्रभावशाली हैं।रविवार के अधिष्ठातृ देव भगवान सूर्य नारायण हैं।वे सम्पूर्ण संसार को प्रकाश प्रदान करने वाले प्रत्यक्ष देवता हैं।वे सभी ग्रहों के अधिपति हैं।इसीलिए उन्हें ग्रहराज भी कहा जाता है।रविवार स्थिर संज्ञक दिन है।इस दिन शान्तिकर्म ; उद्यान लगाना तथा स्थिर कर्म करना शुभ होता है।
           पुष्य नक्षत्र सभी नक्षत्रों मे सबसे शुभ एवं प्रभावशाली माना जाता है।ज्योतिष मे इसे नक्षत्र सम्राट की संज्ञा प्रदान की गयी है।पुष्य नक्षत्र के स्वामी देवगुरु वृहस्पति हैं।केवल वैवाहिक कृत्य को छोड़कर अन्य सभी कार्य पुष्य नक्षत्र मे शुभ होते हैं।यह समस्त दोषकारक शक्तियों को निस्तेज कर देता है।इस नक्षत्र मे किया गया प्रत्येक कार्य स्थिर एवं शुभदायी होता है ---
   पुष्यः परकृतं हन्ति न तु पुष्यकृतं परः।
   दोषं यद्यष्टमोऽपीन्दुः पुष्यः सर्वार्थसाधकः।।
          इस प्रकार अत्यन्त प्रभावशाली वार एवं नक्षत्र के मेल से बनने वाला रवि-पुष्य योग निश्चित रूप से सर्वार्थ-साधक होता है।यह योग यन्त्र ; मन्त्र ; तन्त्र आदि की सिद्धि के लिए बहुत शुभद होता है।इसमे औषधि-सेवन भी बहुत शुभ फलदायक होता है।इस दिन घर गृहस्थी की वस्तुयें खरीदना भी बहुत लाभप्रद होता है।ज्योतिषीय दृष्टि से यह बहुत उत्तम योग माना जाता है।

2 comments: