किसी भी मन्त्र-जप के बाद हवन आवश्यक है।सामान्य रूप से जपे गये मन्त्र की संख्या का दसवाँ भाग तुल्य हवन का विधान है।यदि एक लाख पचीस हजार जप किया जाय तो बारह हजार पाँच सौ आहुति देनी चाहिए।किन्तु इतनी संख्या मे आहुति संभव न होने पर इतनी ही संख्या का जप अधिक कर दिया जाता है और जप का सौवाँ हिस्सा हवन कर दिया जाता है।हवन के लिए सामग्री का भी बहुत महत्त्व है।सामान्य रूप से तिल का आधा चावल और चावल का आधा जौ मिलाया जाता है।कुल सामग्री के अनुपात मे घी ; दशाँग और गुड़ मिलाया जाता है।
शास्त्रों मे उपर्युक्त सामग्री के साथ अनेक ऐसी वस्तुओं का उल्लेख हुआ है ; जो विशेष प्रयोजनों मे प्रयुक्त होती हैं।जैसे दीर्घायु प्राप्ति के लिए दूर्वांकुर ; वाणी ; गिलोय ( गुरिच ) और घुटिका विशेष महत्त्वपूर्ण हैं।यदि " ऊँ नमः शिवाय " मन्त्र से इन सामग्रियों की दस हजार आहुतियाँ दे तो निश्चित रूप से दीर्घायु की प्राप्ति होती है।अन्य मन्त्रों के अनुष्ठान के बाद की हवन मे भी ये वस्तुयें प्रयुक्त हो सकती हैं।ये दीर्घायु प्रदान करने वाला अपना गुण अवश्य दिखायेंगी।
ऊपर जो वाणी ; गिलोय आदि वस्तुयें बतायी गयी हैं।उन्हें अन्य सामग्रियों के साथ मिलाया न जाय।बल्कि प्रत्येक वस्तु के न्यूनतम 108 टुकड़े घी मे डुबोकर प्रत्येक मन्त्र पर एक टुकड़े की आहुति डाली जाय तो अधिक लाभ होता है।टुकड़ों की संख्या अधिकाधिक रखने का प्रयास करें तो अधिक लाभ होगा।
Friday, 26 August 2016
दीर्घायु कारक हवन सामग्री -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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