Saturday, 27 August 2016

प्रार्थना -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

          अखिल ब्रह्माण्ड-नायक परब्रह्म परमात्मा का गुणगान करते हुए उनके साथ तादात्म्य स्थापित करने के प्रयास को प्रार्थना कहा जाता है।यह तभी सफल होती है ; जब प्रार्थना करने वाला व्यक्ति समस्त सांसारिक वस्तुओं को भूलकर उस परमात्म सत्ता मे निमग्न हो जाता है।प्रार्थना मे अभूतपूर्व शक्ति होती है।जीवन मे अनेक बार ऐसी घटनायें सुनने को मिलती हैं ; जब भारी से भारी विपत्ति भी प्रार्थना के बल पर टल जाती है।आवश्यकता है केवल श्रद्धा ; विश्वास और तन्मयता की।तदि ये तीनों तथ्य विद्यमान हों तो प्रार्थना के असफल होने का प्रश्न ही नहीं उठता है।
          पुराणों मे असंख्य ऐसे आख्यान उपलब्ध हैं ; जिन्हें देखने से प्रार्थना की अपरिमित शक्ति का स्वयमेव बोध हो जाता है।कौरवों की सभा मे द्रौपदी की प्रार्थना पर श्रीकृष्ण दौड़े चले आये और ऐसा वस्त्रावतार ग्रहण किया कि महाशक्तिशाली दुःशासन हार मान कर बैठ गया।मनुष्यों की बात छोड़िये ग्राह-ग्रसित गजराज की प्रार्थना का ही प्रभाव है कि श्रीहरि दौड़े चले आये और उसकी रक्षा की।इस प्रकार असंख्य उदाहरण दिये जा सकते हैं ; जब प्रार्थना ने वह कर दिखाया ; जो नितान्त असम्भव एवं दुष्कर था।अतः प्रत्येक व्यक्ति को इस अमोघ उपाय का आश्रय अवश्य ग्रहण करना चाहिए।

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