इस धरा पर जितने भी देवी-देवता अवतरित हुए हैं ; वे सभी दिव्य-शक्तियों से परिपूर्ण थे।सबके अन्दर असीम बल ; पौरुष ; शक्ति ; सामर्थ्य ; ज्ञान ; विज्ञान ; बुद्धि ; विवेक ; दया ; क्षमा ; उदारता आदि सद्गुण विद्यमान थे।उनमे सामाजिक ; धार्मिक ; सांस्कृतिक गुणों की बहुलता थी।सभी अवतार दिव्य गुणों से विभूषित थे।किन्तु लीला पुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्ण के समान सहनशीलता किसी अन्य मे नहीं दिखाई पड़ी।यद्यपि अन्य अवतार भी पर्याप्त सहनशील थे फिर भी श्री कृष्ण तो सहनशीलता की चरमसीमा तक पहुँच गये थे।उनकी सहनशीलता एक आदर्श बन गयी थी।एक ओर वे असीम नटखट और दूसरी ओर अपार सहनशील भी थे।
ब्रजराज नन्द बाबा के यहाँ राजकुमार का जीवन जीने वाले नन्हें से कन्हैया जिस गली मे जाते ; वहीं पर गोपियों की ताने भरी बातें सुनने को पाते। इतना ही नहीं ; बल्कि वे गोपियाँ उस छोटे से बच्चे को लड़कियों का कपड़ा पहना कर नचाने लगतीं।वे बेचारे उनके इशारों पर नाचने लगते।कभी मटकते ; कभी थिरकते ; कभी आँखें चुराते और मुसकराते।लेकिन कभी गोपियों की बात न टालते।कभी थोड़ी सी दही और मक्खन पाने के लिए घण्टों नाचते रहते।कभी अपराध न करने पर भी चोरी के अपराधी बन जाते।खिलाते ग्वाल-बालों को और पकड़े स्वयं जाते।यह थी उस नटवर की लीला।
कभी उस बच्चे की इच्छा दही या मक्खन खाने की हुई और उसने किसी के यहाँ दही मक्खन खा लिया तो उन गोपियों से डाँट फटकार भी सहन करता है ; किन्तु कभी उफ तक नहीं करता।कभी-कभी दह-मक्खन की चोरी के अपराध मे माता यशोदा के सामने लाया जाता है।माता से प्रताड़ित होता है।कभी कभी माता जी उसका कान पकड़ कर उमेठने लगती हैं ; कान पकड़वा कर उठक-बैठक लगवाती हैं।फिर भी इनकार नहीं करता।कभी रस्सी मे बँधकर यमलार्जुन को गिरा देते।
अब तो शिकायतों का क्रम बन गया।प्रतिदिन कोई न कोई गोपी शिकायत करने आ ही जाती थी।किसी ने बताया कि कन्हैया ने मिट्टी खा लिया।माँ ने डाटकर मुह खोलने को कहा। कन्हैया ने सोचा कि अब मुझे भी अपनी दिव्य लीला दिखानी चाहिए।फिर क्या था ; उन्होंने मुह खोल दिया।यशोदा जी घबरा गयीं ; क्योंकि उन्हें वहाँ सम्पूर्ण सचराचर जगत दिखायी पड़ने लगा था।लेकिन यह तो खेल था ; माता और पुत्र के बीच का ; जीव और ब्रह्म का।अतः शीघ्र ही अपनी माया सँकेल ली और सब कुछ सामान्य सा हो गया।
उस बेचारे कन्हैया के पीछे सभी पड़े थे।वे तो मन बहलाने के लिए गाय चराने गये थे परन्तु वहाँ सभी ग्वाल-बाल उन्हीं से काम लेने लगे।कोई गाय हाँकने को कहता ; कोई पानी लाने को कहता।कभी कोई गाने के लिए भी आदेश दे देता।बेचारे कन्हैया छोटे होने के कारण इनकार भी न कर पाते।दिन भर आज्ञा पालन मे लगे रहते।जब कोई मुसीबत आती तब वही आगे भेजे जाते।चाहे कोई दैत्य हो या कालिय नाग ; सब जगह कन्हैया को ही आगे रहना पड़ता था।फिर भी कभी इनकार न किया।
अरे ; धन्य हो प्रभुवर।आपकी लीला बड़ी विचित्र है।पग-पग पर सहनशीलता का आदर्श और नित्य नवीन लीलायें।उन लीलाओं के कारण डाँट-फटकार और उलाहने सुनना ; फिर भी मुसकराते हुए सहन करना।यह तो केवल आप के ही वश का है।दूसरा तो क्षण भर नहीं टिकेगा।आप और आपकी लीला अपरंपार है।
Thursday, 25 August 2016
सर्वाधिक सहनशील देवता श्रीकृष्ण -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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